________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५०८
इसमे कुछ काठिन्यता पडनेका संभव है, सो क्षमा वगसेगें, और विशेषतामें इतनी सूचना देकर प्रस्तुतार्थका अनुसरण करतें है तत्पट्टे ५१ मा श्रीजिनपद्मसूरिजी भए' तिके छाजेड वंश भूषणसंवत् १३८१ का जन्म संवत् १३८९ ज्येष्ठ सुदि ६ छडके रोज श्रीदेराउर नगर में साह हरपालनें नंदीमहोत्सव करा, तब आठमें वरसमें तरुणप्रभआचार्यसूरिमंत्रदीया, अथ एकदा श्रीगुरुमहाराज बाहडमेरनगर में श्रीमहावीरस्वामी के मंदिरमें देववन्दनकरनें वास्ते गए तहां जिनमंदिरको दरवाजो छोटो प्रतिमावडी देखके, पंजाबदेश के रहनेवाले थे, इसवास्ते उसदेशकी भाषाकरके कहा, बृहानंदा, यानें दरवजाछोटा, वसहीबड्डी याने प्रतिमावडी, अंदरक्यूं माणित्ति यानें भीतर कैसे माई, ऐसेप्रगट बालभाव वचनसुणके, श्रीगुरु - महाराजके पास में रहे, विवेकसमुद्रोपाध्याय ने कहा कि मौनकरो, ततोव्याख्यानस्थितिप्रवर्त्तावते उन उपाध्यायकेसाथ श्रीगुरुमहाराज गुर्जरदेशमें आए, तहां पाटणकेपास सरखती नदी के तटपर रातवासी रहे परंतु उसवखतमें गुरुमहाराजकों ऐसी चिंता उत्पन्नभईके सवेरे संघ अगाडी इसभाषाकर के किसतरे व्याख्यान करूंगा, ऐसी चिंताकरते जितने रहें हैं उतनें तो श्रीगुरुमहाराजके पुन्यसे आकर्षित भई ऐसी अर्द्धरात्रि के समय में सरखती नदी की अधिष्ठायिका सरस्वतीदेवी प्रगटहोके, ऐसा वरदिया, अहो स्वामी प्रभातसमय में आप श्रीसंघके आगे जो कुछ कहोगे, उससे सकलसंघ प्रसन्नहोगा, वाद प्रभातसममें संघ अगाडी गुरुमहाराज अपणी इछासें अर्हतो भगवंत इन्द्रमहिताः सिद्धा सिद्धिस्थिता, आचार्या जिनशासनोन्नतिकरः पूज्या
For Private And Personal Use Only