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अथ पुष्पपूजा || दूहा - केत किचंपकफूलथी, पूजे जे गुरुपाय, तसुजससूरउदैहुवे, अपजस तिमिर नसाय ॥ १ ॥ ढाल चंपक के कि
मरुवो दमन सेवंती फूल, जाई जुई मोगरो मालती तेम उडूल,
कमल गुलाब चंबेली बेली परमल पूर, गुरुचरणेंजे ढोवे होवे जसज्यं सूर || २ || ॐही श्री श्रीजिनकुशलमूरि गुरुचरण कमलेभ्यः पुष्पं निर्वपामिते स्वाहा इति पुष्पपूजा ॥
अथ अक्षतपूजा ॥ दूहा - उज्जलज्यों शशि अकविण, खंडित नहीं विशाल, अक्षत गुरु चरणें ठवे, तसु घर मंगलमाल ॥ १ ॥ ढाल - सरल सुगंधित तंदुल उज्जल जल उत्पन्न, ज्युंवर मोती आभा डुंती उज्वलवन, जलधोई ससमोई सोई अक्षतनव्य, स्वस्तिक कुशल वधावे पावे मंगल भव्य || २ || ॐ ही श्री श्रीजिनकुशलसूरिगुरुचरणकमलेभ्यः अक्षतं निर्वपामिते स्वाहा ।। इति अक्षतपूजा ||
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अथ दीपकपूजा ।। दूहा- कंचनमणिमयरत्ननी, दीवी करघृतपूर, वाती मौली सूत घर, करो प्रदीपसुनूर || १ || ढाल - कंचनघटित जटित मति नानाविधनवरल, दीवी अतिकारीगरकीवी अधिके यत्न, घृतपूरी ससनूरी मौली वाती जोय, दीपकरे गुरु आगे ज्योतउद्योती होय ॥ २ ॥ ॐहीश्री श्रीजिनकुशलसूरिगुरुचरणकमलेभ्यः दीपं निर्वपामिते स्वाहाः ॥ इतिदीपकपूजा । अथ धूपपूजा लिख्यते ॥ बावन्नाचंदन अगर, सेल्लारस घनसार, धूपे जे गुरु धूपथी, तसघर रिधविसतार || १|| ढाल - अगर चंदन सेल्लारस छाडछडीलो मेल, कपूर काचरी वलि घनसारे मृगमदभेल, धूप अडंग करी गुरु
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