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अथ श्रीपार्श्वयक्षादि सुरसेवित श्रीज्ञानसारजी कृत् श्रीजिनकुशल स्रीणां प्राचीना अष्टप्रकारी पूजा लिख्यते । तथाहि ॥ * ॥ सक लगुणगरिष्ठान् सत्तपोभिर्वरिष्ठान् शमदमय मयुष्टां चारुचारित्र निष्ठान् निखिल जगति पीठे दर्शितात्मप्रभावान्, मुनिपकुशलसूरीन स्थापयाम्यपीठे ||१|| ॐही श्री श्रीजिनकुशलसूरि गुरो अत्रावतरावर स्वाहा ॥ १ ॥ ॐ ही श्री श्रीजिनकुशलसूरि अत्र तिष्ठठः ठः स्वाहा: इति प्रतिष्ठापनम् ॥ २ ॥ ॐही श्री श्रीजिनकुशलसूरि गुरो अत्र मम सन्निहितो भव वपट् इति संनिधिकरणम् " ॥ ३ ॥ अथ अष्टप्रकारी पूजा लिख्यते ॥
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॥ * ॥ दूहा - गंगाजल निर्मुलवलि, तीर्थोदक भरपूर, कलशभरी गुरु चरणपर, ढाले तस दुखदूर ॥ १ ॥ ढाल देशी सूरती महीनांनी ॥ गंगाजल अति निरमल अमल सुकमले पूर, खीरो दधि वरदधि ज्यौं उज्जल जलभरपूर, तेह उदकवलि तीर्थ नीरभरि कलश सनूर, गुरुचरणे जे ढालेटाले दुकृतदूर ॥ १ ॥ ॐ श्री श्रीजिनकुशलसूरिगुरुचरणकमलेभ्यः जलं निर्वपामिते स्वाहा ॥ इति जलपूजा || अथ चंदनपूजा ॥ दूहा - बावन्ना चंदन अगर घस केसर घनसार, चरचै जे गुरु चरणनें, पामें जयजयकार ॥ १ ॥ ढाल - मलयागर तिम अगरचंदनवलि केसरसार, कस्तूरी अतिगंधे पूरी घस घनसार, कुशलसूरिगुरुचरणे चरचै चढते भाव, सकलरोग तनसोगहरे वलि जडताभाव ॥ २ ॥ ॐ श्री श्री जिनकुशलसूरि गुरुचरणकमलेभ्यः चंदनं निर्वपामि ते स्वाहा ॥ २ ॥ इति चंदनपूजा ||
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