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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९ रणमें बेठके, १२ परखदाके सन्मुख, भगवान् धर्मोपदेशदेके, चतुर्विधसंघकी स्थापना करी ॥ भगवान्के १ लाख (१०००००) सर्व साधुभए (जिसमें ) नंद प्रमुख ८१ गणधर हुए ॥ १२ हजार (१२०००) वैक्रियलब्धि धारक भए ॥ ७ हजार २ सै (७२००) अवधि ज्ञानीभए ॥ ७ हजार ५ से (७५००) मनपर्यवज्ञानीभए । १४ से (१४००) चवदे पूर्वधारीभए ॥ ५ हजार ८ सै (५८००) वादी विरुदधारीभए ॥ १ लाख ४० हजार (१४००००) सुयशाप्रमुख साधवी हुई ॥ दोलाख तयासीहजार (२८३०००) श्रावकभए ॥ ४ लाख ५८ हजार (४५८०००) श्राविकामई (इत्यादिक) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेतशिखरजी परवतके ऊपर, १ हजार (१०००) साधुवोंके साथ, १ माशका अणसण ग्रहण किया। काउसग्ग मुद्रायें, आत्मगुण के ध्यानसें, सर्वकमोंको खपायके, मिति वैशाखबदि २ केदिन, १ लाख पूर्वको आयुपूरण करके, सिद्धिस्थानको प्राप्तभए ॥ शासनदेव ब्रह्मायक्ष । शासनदेवी अशोका । मानवगण । नकुलयोनि । धनराशि । अंतरकाल १ कोटि सागरोपम, सम्यक्त पाएवाद, तीसरे भवमें मोक्षगए (इनोंकी बखतमें ) हरिवंशकुलकी उत्पत्तिभई (जिसमें ) वसुराजादि हुवे है । इसका विस्तार संबंध जैनसिद्धांतोंसें जाणना ॥ इति ५५ बोलगर्भित श्री शीतलनाथ स्वामी अधिकारः ॥ ॥ अथ ११ मा श्री श्रेयांसनाथस्वामी अधिकारः॥ सिंहपुरी नगरीमें, इक्ष्वाकवंशी, विष्णु नामें राजा हुवा (तिसके ) विष्णु नामें पट्टराणी, जिसकी कूखमें, अच्युतनामा १२ मा For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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