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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ के दिन, काकंदी नगरीमें, छठ तप करके, शालवृक्षके नीचे, १००० पुरुषोंके साथ, दीक्षा ग्रहण करी (उसवखत ) चोथो मनपर्यवज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, पुष्पदत्तकेघरे, परमानसें हुवो । ४ वरस छद्मस्थपणे विहार करके, फेर काकंदी नगरी आए ( वहां ) छठ तप संयुक्त, मिति कार्तिकशुद ३ केदिन, लोकालोक प्रकाशक केवलग्यान केवल दर्शन उत्पन्न हुवा (उसबखत ) चतुर्निकाय देवगणका किया हुवा समवसरणमें, १२ परखदाके सन्मुख, भगवान् धर्मोपदेश देके, चतुर्विध संघकी स्थापना करी । भगवान्के २ लाख (२०००००) सर्व साधु भए (जिसमें) वराह प्रमुख ८८ गणधर भए ॥ १३ हजार (१३०००) वैकियलब्धि धारक भए ।। ८ हजार ४ सै (८४००) अवधिज्ञानी भए ॥ ७ हजार ५ सै (७५००) मनपर्यव ज्ञानीभए ॥ ७ हजार ५ सै (७५००) केवल ज्ञानीभए ॥ पनरसै (१५००) चौदे पूर्वधारीभए । छ हजार (६०००) वादीविरुद धरनेवालेभए ।। २ लाख २० हजार (१२००००) वारुणीप्रमुख साधवी हुई ॥ २ लाख २९ हजार (२२९०००) श्रावक हुए ॥ ४ लाख ७१ हजार (४७१०००) श्राविका हुई ( इत्यादिक ) बहुतसे जीवोंका उद्धार करकें, कर्मशत्रुवोंसे छोडायकें, अंतसमें समेतशिखरजी पर्वतके ऊपर, १ हजार (१०००) साधुवोंके साथ, १ माशका अणशण ग्रहण किया । काउसग्ग मुद्रायें, आत्मगुणके ध्यानसें, सबकर्मोकों खपायके, मिति भाद्रवा शुद् ९ के दिन, २ लाख पूर्वका आउखा पूरण करके, सिद्धि स्थानको प्राप्ति भए ॥ शासनदेव अजितयक्ष । For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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