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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोगावली कर्मनिर्जरार्थे विवाहकरके क्रमसें राज्यपद धारण कीया । अवसर आये, लोकांतिक देवताके वचनसें संवत्सरपर्यंत मोटो दान देके, मिति वैशाख शुक्ल ९ के दिन अयोध्यानगरीमें, नित्य भक्त, शालवृक्षके नीचे, १००० पुरुषोंके साथ दिक्षा ग्रहण करी (उसबखत ) चोथो मनपर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम पारणो परमान्नक्षीरसें, पद्मशेखरके घरे हुवो । २० वरष छद्मस्थपणें विहार करकें, फेर अयोध्यानगरीमें चातुर्माश रहें । वहां छठ तपसंयुक्त, मिति चैत्र शुक्ल ११ के दिन, लोकालोका प्रकाशक केवलज्ञान उत्पन्न भया । उसबखत चतुर्निकाय देवगणके किया हुवा, समवसरण में बैठके, १२ परिषदाके सन्मुख, धर्मोपदेश देके, चतुर्विधसंघकी स्थापना करी || भगवान् के सर्वसाधु तीन लाख वीस हजार (३२००००) हुए ( जिसमें ) चरम प्रमुख सो (१००) गणधरपदधारक भए । १८ हजार च्यारसे चालीस (१८४४०) वैक्रियलब्धि धारक भए । ११ हजार (११०००) अवधिज्ञानी भए । १० हजार साढाच्यारसे (१०४५० ) मन पर्यवज्ञानी हुए || १३ हजार (१३०००) केवल ज्ञानीभए || चोवीस २४०० चवदे पूर्वधारक भए । १० हजार च्यारसे (१०४००) चादीविरुद् धरनें वाले भए || ५ लाख ३० हजार (५३०००० ) काश्यपप्रमुख साधवी हुई ।। २ लाख ८१ हजार (२८१०००) श्रावक हुए ।। ५ लाख १६ हजार (५१६०००) श्राविका हुई || ( इत्यादिक) बहुत से जीवोंका उद्धार करके अंतसमें समेतशिखर पर्वतके ऊपर, १ हजार (१०००) साधुवोंके साथ १ माशका अण For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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