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पदके परिपाकसे स्वर्ग मृत्यु पातालवासी सर्व जीवजिणोंकी आणा खशिरपर धारनेवाले भये, और सर्वोत्कृष्टपणे श्री वीरशासनकी प्रभावना करनेवाले ऐसे परम पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय जंगमयुगप्रधान श्रीमजिनदत्तसूरिजी महाराज बडेदादासाहेबका आमूलचूलापर्यन्त, इतिहासरूप, यहचरित्र सिद्ध हूवाहै, सो सहर्ष सादर आपलोकोंके कर. कमलोंमे पूर्वार्ध प्रथम भाग रूप श्री पूज्यपादका चरित्र समर्पण करता हुं सो इसकों दत्तावधान होकर एक चित्तसें पढ़ें, और श्रीगुरुमहाराजकी भक्तिमें लयलीन होवें, भवसागरका पार पावें इत्याशास्महे उ । जयसागर गणिः ॥ यह पूज्यपाद आचार्य महाराज कबसें कबतक विद्यमानथे, इस शंका पर पूज्यपादश्रीका सत्ता समय देखातें है, श्री वीरात् १६०२ विक्रमार्क ११३२ जन्म, वीरात् १६११ वि० ११४१ दीक्षा, वी० १६३९ वि० ११६९ आचार्यपद् वी० १६८१ वि० १२११ स्वर्ग सर्वायु ७९, जन्मस्थान, दीक्षास्थान, धवलकपुर, प्रतिबोधक चारित्रोदयमें सहायक गीतार्था धर्मदेवोपाध्यायसत्का श्रीमती आर्या, दीक्षागुरु धर्मदेवोपाध्यायाः, बृहद्गच्छीय खरतरविरुदधारक श्रीमन्जिनेश्वराचार्य सुशिष्याः, श्रीपूज्यपादके मातुश्री का नाम श्रीमती बाहडदेवी, पितृनाम श्रीमद् वाछिगमंत्रीश्वरः, हुंबड गोत्रीयः श्रीमतां विद्याभ्यास पंजिकादिरूप लक्षणादि शास्त्र जैन भावडाचार्यसे, और श्रीआवश्यकादि सूत्र सिद्धान्त योगविधि पूर्वक स्वगुरु समीपे पढे, सूरिपद प्राप्तिस्थान, चित्रकूट दुर्गे, आचार्यपद चितोडगढमे, स्वर्गारोहणस्थान हर्षपुर याने अजमेर, १२११ में श्रीवीरात् चुमालीसमेपाटे
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