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फल देनेसें रह गए। तब लोक, और वृक्षोंके, कंद मूल पत्र फल फूल खाने लगे । केईक इक्षुका रस पीने लगे ( तथा ) सतरे जातिका कच्चा अन्न खाने लगे (परंतु ) कितनेक दिनोंतक कचा अन्न उनको जीर्ण न होनेसें, ऋषभदेवजीने उनकों कहा (कि) तुम हाथोंसे मसलके, तूंतडा दूर करके, खाओ ( फेर) कितनेक दिनों पीछे, वैसेभी पाचन न होने लगा । तब अनेक भांतसें कच्चा अन्न खानेकी विधि बताई । तोभी काल दोपसें अन्न पाचन न होने लगा ( इस अवसरमें ) जंगलोंमे चांसादिक घसनेसें अग्नी उत्पन्न हुवा । पहली कितनेक कालतक अग्नि विछेदथा ( क्युं कि) एकांत स्निग्ध कालमें (और ) एकांत रुक्ष कालमें, अग्नी किसी वस्तूसें उत्पन्न नहिं होसक्ती है ( कदाचित् ) कोई देवता विदेह क्षेत्रसें अग्नीकों लेभी आते (तोभी) इहां तत्काल वुझ जाता था ( इसवास्ते ) पहले अग्नीसें पकाके खानेका उपदेश नहिं दिया (पीछे) तिस अग्नीकों तृणादि दाह कर्ता देखके, अपूर्व रत्न जानके पकडने लगे । जब हाथ जले, तब भयसें आदि राजाळू आयके कहा (और) अपणा हाथ जला हुवा देखाया ( तब ) आदि राजानें अग्नी ले आनेका,
और फल फूल पकायके खानेका विधि बताया । फेर आप हाथीपर बेठे हुवे वनमें आये । युगलियोंकेपास लीली मट्टी मंगायके, हस्तीपर बेठे हुवे सबके सामने एक हांडी बनायके दीवी (और) कहा कि, इसकुं अग्नीमें रखके पकायो । हांडी पकके तैयार भई ( तब ) उसमें धान्यका, जलका प्रमाण, रांध
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