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अतः चोरासीगच्छोंमे चक्षुतिलक स्थूणा जिहाज सार्थवाह निर्यामकसमान चारित्रपात्रचूडामणि अनेक चारित्रहीन सिथलाचारी आचार्योंको और साध्वादि संघको सुविहित चारित्र और सुविहित विधिमार्गमे प्रवर्त्तनेवाले, प्रायें लुप्तप्राय सद्विधिकों प्रगट करनेवाले, तीर्थंकर प्रतिरूप श्रीगौतम श्रीसुधर्मादि अवताररूप श्रीसीमंधरस्वामी के मुखारविंदसें निर्णय हुवा है एकावतारीपणा जिणोंका अर्थात् एक भवकरके मुक्तिनगरीमें जानेवाले, युगप्रधान पद विभूषित ऐसे अनेक क्षत्रिय वैश्य ब्राह्मणादिक महर्द्धिकलोकोकों प्रति बोधके जैनकोम बनानेवाले दस दस हजार कुटुंब सहित बोहित्थ कुमारपालादि ४ राजाओंको १२ व्रत सम्यक्तसहित धरानेवाले और भी भाटी पडिहार चहुआण पवार देवडा राठोड आदिराजाओंको जैनधर्मतर्फ झुकानेवाले, जैनधर्म जैन प्रजा के ऊपर आये हुवे अनेक तरहके उपद्रवोंको दूर हटानेवाले, विक्रमपुर में १२०० साधु साधवीयां को दीक्षादेनेवाले, १ लाख तीस हजार घरकुटुंबको प्रतिबोध देनेवाले, अनेक मिध्यात्वी देवीदेवताओंसें जैनधर्मकी सेवाकरानेवाले, भवनपति व्यंतर जोतिषि वैमानिक इन ४ निकाय के अनेक सम्यग्दृष्टि देवी देवताओंसें सुसेवित होनेवाले, श्रीसूरिमंत्रके बलसें धरणेंद्रादि ६५ सूरिमंत्राधिष्ठायकों को आकर्षणकरनेवाले, परकायाप्रवेशादि विद्यानिपुण, और चितोडनगरी में श्री चिंतामणिपार्श्वनाथ स्वामिके मंदिर में गुप्तरहिहुइपूर्वाचार्यसंबंधि अनेक विद्यान्नायसें भरीहूइ आम्नाय पुस्तक विद्याबलसें ग्रहणकरनेवाले, उज्जेणी महाकाल मंदिर के स्तंभ में पूर्वाचार्यांने गुप्तसुरक्षितपणें विद्यान्नाय पुस्तकें
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