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रत्नराशि अग्निशिखा, यह १४ स्वमा देखा, और गर्भके प्रभावसें उत्तम उत्तम जो जो डोहला, मरुदेवी माताकों उत्पन्नहुवा, सो इंद्र आयके पूर्ण किया पीछे सर्व दिशायें सुमिख्य समें, मिति चैत्रवदि ८ के दिन, उत्तराषाढा नक्षत्रके विषे, भगवानका जन्म हुवा उसी वखत, रुचक नामकादीप उसके मध्यभागे वलयाकारगोल ८४ हजार योजन ऊंचो और (१००००) दसहजार २२ योजन मूलमे, और (४०००) चार हजारने २४ योजन शिखरऊपर विस्तार है तद् यथाबहुसंख, विगप्पे, रुयगदीव, उच्चत्ति सहस्स चुलसीई, नर नग सम रुयगो पुण, वित्थरि सयठाण सहसंको २५९ तस्स सिहरंमि चउदिसि,बीयसहस्स इगिगु चउत्थि अष्ट, विदिसि चउ इय चत्ता, दिसि कुमरि कूड सहस्सुच्चा २६०
अवतरण-रुचकद्वीपके संख्याका घणा विकल्प मेद है ८४ हजार योजन उंचो है' और मानुषोत्तर पर्वत सदृश रुचक पर्वत है, विस्तारमे सो अंकके स्थानमें, हजारका अंक जाणना, २५९, और रुचक द्वीप संख्या विकल्प मूल पाठ देते है, दोकोडी सहस्साई, छच्चेवसयाई इक्कवीसाइ, चउयालसयसहस्साइ, विखंभो कुंडलोदीवो, १, दसकोडी सहस्साई, चत्तारिसयाई पंचसीयाई' बावत्तरिचलक्खा,, विक्खंभोरुयगदीवस्स,, २, यह द्वीपपन्नतिकीनियुक्तिमांहें कुंडलद्वीप और रुचकद्वीपको विष्कंभ कह्यो है,, १, जंबुधायई पुक्खर, वारुणी खीर घय खोय नंदी सरा, संख अरुण रूणवाय कुंडल, संखरुयगभुयग कुस कुंचा, ।
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