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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० कोडा कोड सागर प्रमाणे काल है उसकुं १ कालचक्र करके कहेतें हैं ऐसा कालचक्र अतीत कालमें अनंता हूवा और अनागत कालमें अनंता होगा यह प्रसंग कहा अब प्रकृत अधिकारका आश्रय करतें हैं और भरतादिक १० क्षेत्रों में दरेक उत्सर्पणी तथा अवसर्पणी कालमें व्यवहारनीति राजनीति धर्मनीति क्षत्रिय ब्राह्मण वैश्य शूद्र ४ वर्णोंकी तथा चतुर्विध संघकी उत्पत्ति और २४ तीर्थकर १२ चक्रवर्त्ती ९ वासुदेव ९ बलदेव ९ प्रतिहरि ११ रुद्र याने महादेव ९ नारद गणधर १४ पूर्वधारी मनपर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी केवली चरमशरीरी सत्ता सत्तयों आचार्य उपाध्याय साधु युगप्रधानाचार्य संवेगपक्षी श्रावक वगैरे अनेक महापुरुष हूवा करतें हैं और उत्सर्पणी कालके ६ आरोंमे पुण्य प्रकृति दानादि धर्म शरीर संस्थान संघयण बल आयु आदिक सर्व शुभ भाव वर्द्धमान होवे हैं अवसर्पणी कालके ६ आरोंमे पुण्य प्रकृत्यादिक हीयमान सर्व शुभ भाव हुवा करतें हैं और उत्सर्पणी अवसर्पणी के दुषमदुषमादि और सुषमसुषमादि छ छ आरोंका स्वरूप और पूर्वोक्त पदार्थोंका विशेष वर्णन शास्त्रांतरसें जाणना इहां ग्रंथ गौरवके भय से नहिं लिखाहै अब वर्त्तमान इस अवसर्पणी कालमें सर्वोत्तम सनातन जैनधर्म की उपेत्ति जगदीश्वर श्रीऋषभादिक २४ तीर्थंकरोंसें है इसलिये श्रीऋषभादि महापुरुषोंका संक्षिप्तपणें स्वरूप इहां लिखतें है । १ टिप्पणी - भावार्थ - यह भाव है कि पांच महाविदेह क्षेत्रों में For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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