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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६१ कलापका सिखाना इत्यादि, और श्रावककैसूत्रादिपाठ तो उसके पहले घरमें रहे हुएही सीखा है "करेमि भन्ते सामाइयं" इत्यादि पढ़ाना शुरू किया पहिलेहीदिन सोमचन्द्र मुनिको वहिर्भूमि लेगए सर्वदेवगणी ॥ वाद सोमचन्द्रने नहींजाननेसे क्षेत्रमें वनस्पतिके पत्र तोड़े तब शिक्षानिमित्त रजोहरणमुखवस्त्रिका लेके सर्वदेवगणी बोले दीक्षा लेके क्षेत्रमें क्या पत्रतोड़ेजावे हैं इसलिए तैं अपने घरजा तब उत्पन्नभईहैप्रतिभाजिसको ऐसा सोमचन्द्र बोला आपने युक्त किया परन्तु मेरी जो चोटीथी सोआपदीजिए जिससे मैं घरजाऊं ऐसा कहनेसे सर्वदेवगणी को आश्चर्यहुआ और विचारा अहो छोटीउमरका है तथापि कैसा इसने उत्तर दिया इसको क्या कहा जावे वाद उससे कहा हेवत्स ऐसा करनानहीं तब सोमचन्द्र बोला हे भगवन् यह मेरा एकअपराधक्षमा करें वाद गणिवर सोमचन्द्रको उपाश्रयलेआए यहवार्ता धर्मदेवउपाध्यायके आगेभई धर्मदेव उपाध्यायने विचारा योग्यहोगा गुणविशिष्टहोगा इसकी रक्षा अच्छीतरहसे कीजावे गणमें आधारभूत होगा ऐसा विचारके सर्वदेवगणीसेकहा इसकीरक्षा अच्छीतरहसे करनी वादमें विहारकरके पाटन आए लक्षण नाम व्याकरण न्यायपंजकादिशास्त्र पढ़नेशुरूकिए सोमचन्द्रने, एकदा भावड़ाचार्यकी धर्मशालामें पंजिका पढ़नेके लिए जाते हुए सोमचन्द्रको किसीउद्धतने कहा जैसे अहो यह सितपट कपलिका (पुस्तक विशेष) हाथमें किसवास्ते रखते हैं अर्थात् पुस्तक लेके क्यों फिरते हैं For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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