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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ श्रुतगतसत्तामें हो चुके ऐसा संभव है निश्चयसें तो श्रीज्ञानीमहाराज जाणे और श्रीगणधरसार्धशतकप्रकरण १ श्रीगणधरसार्धशतकवृहत्वृत्ति २ तथा लघुवृत्ति ३ उपदेशतरंगिणीप्रकरण ४ कल्पान्तरवाच्या ५ समाचारीशतक ६ श्रीकौटिकगच्छपट्टावलीप्रकरण ७ उपाध्याय श्रीक्षमाकल्याणगणिकृत खरतरगच्छपट्टावली ८ श्रीगुरुपारतंत्र्यसरण ९ प्राचीन जैन इतिहास वगेरे ग्रंथोंसें श्रीजिनदत्तसूरि आदि आचार्योंको युगप्रधानपद प्राप्त होते है, अर्थात् युगप्रधानकरके लिखे हैं, और मध्यस्थ आत्मार्थी धर्मार्थी गुणानुरागी भव्य जीवोंके दृष्टिपथमें आयरहे हैं, और इससैंभी प्राचीनप्रमाण ६ ग्रंथोंका ऊपर लिखआयें हैं अखंड गुरुपरम्परा संप्रदायभी ऐसाहि है, इससे यह निश्चय हूवा कि श्रीजिनदत्तादिआचार्ययुगप्रधान है, अतः इनमहापुरुषोंकाचरित्रादिवर्णनकरनासम्यक्तादि गुणोंकी प्राप्तिमें हेतु भूत अतिउत्तम कार्य है इसलिये श्रीवीरनिर्वाणसे श्रीवर्द्धमानस्वामीके पट्टपर श्रीगौतमसुधर्मादिक युगप्रधानोंसे लेकर श्रीजिनवल्लभसूरिजीपर्यन्त युगप्रधानमहाराजोंकाचरित्रकह्याँके अनन्तर क्रम प्राप्त युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरिजीमहाराजका चरित्र कहेते हैं, तद्यथा-श्रीमंतःप्रभुपुंडरीकगणभृन्मुख्यागणाधीश्वरात्रैलोक्यार्ययुगप्रधानकमलाभूषाभृताः सूरयः, अन्येच प्रवरा मुनीद्रनिकराः श्रीसाधुसाधुव्रजाः, श्रीकल्पद्रुमजैत्रचारुमहसः कुर्वन्तुवः सत्फलं ॥१॥ नानालब्धिनिधिनदीपरिदृढश्रीपुंडरीकादिम, ज्ञानध्यानचरित्रसद्गुणगणावासानगारेश्वरान्, संस्तुमः, मयकात्र. वृत्तमिषतः संप्राप्यपुण्यं ततो, भव्यौघः प्रतनोतु सिद्धिकमला For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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