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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३५ संदेहकारि तिमिरेण, तरलिअं जेसिं दसणं नेयं । निव्वुइ पहं पलोअइ, गुरुविजुव एस ओसहओ ॥११६ अर्थ:-सन्देहकारी तिमिरसे तरलित जिन्होंका दर्शन नहीं है वह गुरु वैद्यके उपदेश औषधसे मोक्षमार्गको देखते हैं ॥ ११६ ॥ निप्पचवाय चरणा, कजं साहंति जेउ मुत्तिकरं । मण्णंति कयं तं यं, कयंत सिद्धंउ सपरहिअं ॥११७॥ अर्थः-निर्दोष है चारित्र जिन्होंका ऐसे कर्मक्षयरूप कार्यको साधते हैं सिद्धांतसिद्ध स्वपरहित जो कार्यको मानते हैं वह।।११७॥ पडिसोएण जे पवद्या, चत्ता अणुसोअगामिनी वहा । जणजत्ताए मुक्का, मयमच्छर मोहओ चुका ॥ ११८ ॥ अर्थः-प्रतिश्रोत मार्गकरके (मोक्षसाधनमार्ग) प्रवर्तमान भया अनुश्रोतगामी मार्ग लोकयात्रा गृहव्यापारादिकसे छूट गये और मद मत्सर मोहसे रहित भए ॥ ११८ ॥ सुद्धं सिद्धंतकहं, कहंति वीहंति नो परेहितो। वयणं वयंति जत्तो, निव्वुइ वयणं धुवं होइ ॥ ११९ ॥ अर्थः-शुद्ध सिद्धांत कथा. कहे औरोंसे डरे नहीं वचन ऐसे बोले कि जिन्हांसे मोक्षमार्गमें निश्चय प्रवृत्ति होवे ॥ ११९ ॥ तविवरीआ अवरे, जइवेसधरावि हुंति नहु पुज्जा। तईसणमवि मिच्छत्तमणुक्खणं जणइ जीवाणं ॥१२०॥ अर्थः-उक्त गुणवालोंसे विपरीतयतिवेषधारनेवालेभी पूज्य For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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