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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९९ भव्योंके उपगारार्थ और धर्मानुरागी भव्योंके सत्यधर्म आराधनके लिये विशिष्टगुणवान् आचार्योंपर दुर्लभ बोधिजीवोंके करे हुवे आक्षेप दूर करनेके लिये भावदयापूर्वक देनेमें आया है, नतु द्वेषभावसे है और भगवान की आज्ञानुसार साम्नाय सप्रमाण शास्त्रानुसार धर्माराधन करते हुवे सबहि गच्छवाले श्री सर्वज्ञ देवकी आज्ञा के आराधक हैं और अक्षर प्रमाणविना पुरुषप्रमाणविना पूर्वापर संबंध शोच्यांविना हरेक विषयमें द्वेषसें विना विचार के प्रमाण विना रागद्वेष करणेसें झूठा दूषण देनेसें और उत्सूत्र प्ररूपणाकरनेसें महानुकर्मबंध होवे है और धर्मार्थीयोंकों भवभीरुता रखनी चाहिये, नहिं तो इसतरह करणेसें महान संसारवृद्धिहि होणाहै, और श्रीमहावीरस्वामी श्रीगौतमस्वामी श्रीसुधर्मास्वामी श्रीजंबुस्वामी प्रभवस्वामी आदि पाटपरंपरा क्रममें ३८ में पाटे श्रीउद्योतनसूरिजी हूवे इहांतक प्रायें सर्वगच्छोंकी पट्टावली एकसरखी है, और केवल श्रीपार्श्वनाथस्वामीके संततिवालोंकी पट्टावली सो अलग हि संभवे है श्रीउद्योतनसूरिजी ८४ गच्छों की स्थापना भई, यह स्थापना श्रीउद्योतनजीने अपणे खहस्तसें की है, और ८४ गच्छ इन गच्छोंमें सुविहित क्रियाकरणेवाले शुद्धप्ररूपक कंचनकामनीके त्यागी पृथग् पृथग् आचार्यादिक हवे हैं और होते है होवेंगे सो सर्व आचार्यादिक ८४ गच्छवाले धर्मार्थी गुणानुरागी भव्योंके मानने पूजने योग्य है, और श्रीउद्योतनसूरिजी के ज्येष्ठांतेवासी श्रीवर्धमानसूरिजी की संतति चली सो इस समय भी खरतर गच्छ नाम से प्रसिद्ध है और खरतर यह नाम १०८० में श्री जिनेश्वरसूरिजी कुं दुर्लभराजाके समक्ष पंचासरा देवलमें सभा समक्ष खुददुर्लभराजाने दिया है तबसें खरतर यह नाम श्री वर्धमानसूरिजी For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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