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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० हजारों भव्यजीवोंको दीक्षा दी और चंद्रप्रभाचार्यकी तरह (श्री) शोभा वा लक्ष्मीके तिलकसमान नवांगटीकाकारके शिष्य श्रीजिनवल्लभसूरिजी महाराज ज्ञानादिलक्ष्मीसें प्रौढताको धारण करतेहूवे, विविध (अनेक ) ग्रंथोंकों करते भये, और श्रीकल्पांतर्वाच्या तपगच्छके श्रीहेमहंसमरिजी महाराजने भिन्न भिन्न गच्छके प्रभाविक आचार्योंके अधिकारमें लिखा है कि, “खरतरगच्छे नवांगीवृत्तिकारक श्रीअभयदेवसरि थया, जिये शासनदेवीना वचनथी थंभणाग्रामे सेढीनदीने उपकंठे जयतिहुअणबत्तीसी नवीन स्तवना करके श्रीपार्श्वनाथजीनी मूर्ति प्रगट कीधी धरणेन्द्र प्रत्यक्ष थयो शरीरतणो कोढरोग उपशमाव्यो नवअंगनीटीका कीधी तच्छिष्य श्रीजिनवल्लभमरिजी थया जिये निर्मल चारित्र सुविहित संवेगपक्ष धारण करी, अनेक ग्रंथतणो निर्माण कीधो तच्छिष्य युगप्रधान श्रीजिनदत्तमरि थया जिये उजैनी चित्तोडना मंदिरथी विद्यापोथी प्रगट कीधी देशावरोंमें विहारकरते रजपूतादिकनें प्रतिबोधीनें सवालाख जैनी श्रावक कीधा इत्यादि"-और श्रीसूक्ष्मार्थ सार्धशतक मूलग्रंथके अंतमें लिखा है किजिणवल्लह गणिरइयं, सुहुमत्थवियारलवमिणं सुयणा, निसुणंतु सुणंतु सयं, परे विबोहिंतु सोहिंतु॥१॥ श्रीचित्रवालगच्छके श्रीधनेश्वरसरिजी महाराजविरचित श्रीसूक्ष्मार्थ सार्धशतक मूलग्रंथकी टीकामें लिखाहै कि-श्रीजिनवल्लभगणिनामकेन मतिमता सकलार्थसंग्राहिस्थानांगाद्यंगोपांग पंचाशकादिशास्त्रवृत्तिविधानावाप्तावदातकीर्तिसुधाधवलितधरामंडलानां श्रीमदऽभयदेवसूरीणां शिष्येण कर्मप्रकृत्यादिगंभीरशास्त्रेभ्यः समुद्धृत्य रचितमिद।। For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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