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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ मुणनेसे जाना जाता है इनोंमें जो श्रेय होवे वह अंगीकार करणा। इसलिये उपदेशमाला प्रारंभकरें तब श्रावकोंने बीनति किया प्रभो? पहले सुना है पूज्य बोले और सुणनाउचित है शुभ दिन में व्याख्यान करणा प्रारंभ किया।। संवच्छर मुसभजिणों छ मासे बद्धमाण जिणचंदो। इअविहरिया निरसणा जइजएओवमाणेणं ॥१॥ अर्थ-रिषभदेवसामी १ वर्ष तप किया और बर्द्धमानस्वामीने ६मासी तपकरा निराहार विचरे इसी तरह मुनियोको तपमेयत्न करणा इस एकगाथाका व्याख्यानमे छमहिना व्यतीतभया तथापि श्रावकोंको बहोतसिद्धांतोंका उदाहरणरूपअमृतरससै तृप्ति नहि भइ और कहने लगे श्रीभगवान् तीर्थंकरदेवहि ऐसा वचनामृतसैं श्रोताजनोंके श्रवणकुं सुखउत्पन्नकरणेमें समर्थहोतेहैं सत्यहै आप श्रीतीर्थंकरसदृशहैं कहाभि है “तित्थयरसमोसरि०" इत्यादि अन्यथा ऐसी अमृतवरसावणीवाणी इसतरहकीव्याख्यान लब्धि कहांस होवै इस प्रकारसै अत्यंत संतुष्टमनश्रावक देशना सुनके होतेभये बहोतअनुमोदन करतेभये अपार हर्षप्राप्त भये अन्यदा चैत्यघरमें व्याख्यान वांचके बहुत श्राक्कजिनोंके साथथे ऐसे गणिवर उपाश्रय आतेथे इस प्रस्तावमें मार्ग में एक पुरुष बहोत परिवारसै परिवरा हुवा स्त्रीयों गीत गातिहै घोडेपर सवार है पाणिग्रहणको जारहाहै पूज्यपादने देखा तबसंविनशिरोमणि ज्ञानदिवाकर संसारकी असारता विचारते ऐसै श्रीगणिवरने कहा अहो देखो देखोसंसारकी क्षणदृष्टनष्टता कैसीहै जिसकारणसे येत्रियां विकखरमानहे मुखारविंदजिनोंका ऐसी गान करति जारहि है येहि For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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