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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ लूणीया गोत्रावतंसक श्रीमान् सद्गृहस्थ सेठ श्रीस्थानमल्लजी तथा सहर जेतारण निवासी, श्रीगुरुदेवमहाराजके परम भक्त, सुश्रावक सेठ श्री छगनमलजी हीराचंदजीने वर्तमान भट्टारक आचार्य महाराजको आग्रह कियाथा, वह उनोंका मनोर्थ आजरोज सफल होनेपर आया है, इस लिये अत्यानंदका समय है, और जगत ईश्वरादि कर्तृत्वविषयिसप्रश्नोत्तर विशेष प्रस्तावना समग्रग्रंथपूर्ण होनेपर दीजावेगी, और ऊप रोक्त श्रीमानोंकी पूर्णआर्थिक सहायता से यह महद श्रीदादासाहेबका चरित्र सिद्ध हुवा है, और दक्षिण हेदराबादमे रहनेवाले अनेक देश शहर निवासी श्रीसंघकी द्रव्यसहायतासें बडे दादासाहेब युगप्रधान श्रीम जिनदत्तसूरीश्वरजीका चरित्र सिद्धहुवाहै श्रीरस्तु शुभं भवतु योगक्षेमं भवतु भद्रं भूयात् कल्याणमस्तु नमः श्रीवर्धमानाय श्रीमते च सुधर्मणे । सर्वानुयोगवृद्धेभ्यो वाण्यै सर्वविदस्तथा ॥ | १ || अज्ञानतिमिरांधानां ज्ञानाञ्जनशलाकया, नेत्रमुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ २ ॥ श्री वर्धमानस्य जिनेश्वरस्य जयन्तु सद्वाक्य सुधाप्रवाहाः । येषां श्रुतिस्पर्शनजः प्रसत्तेः, भव्या भवेयुर्विमलात्मभाजः ॥ ३ ॥ श्री गौतम गणधरः प्रकटप्रभावः सल्लब्धिसि - द्धिनिधिरञ्जितवाक्प्रबंधः, विघ्नांधकारहरणे तरणिप्रकाशः, सहाय्यकृत् भवतु मे जिनवीरशिष्यः || ४ || दासानुदासा इव सर्वदेवा यदीयपादाञ्जतले लुठन्ति मरुस्थली कल्पतरुः स जीयात् युगप्रधानो जिनदत्तसूरिः ॥ ५ ॥ सिद्धान्तसिन्धुः जगदेकवन्धुर्युगप्रधान - प्रभुतां दधानः कल्याणकोटीः प्रकटीकरोतु, सूरीश्वरः श्रीजिनभद्रसूरिः || ६ || षट्त्रिंशद्गुणरत्ननीरनिलयः श्रीशंखवालान्वयः, प्रस्फु • For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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