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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ किसी विवेकी पुरुषनें श्रीनरवर्मराजाके प्रति कहा, हे देव चितोडमे श्वेताम्बराचार्य श्रीमजिनवल्लभगणिजी सर्व विद्यानिधान सुण में आवे है, यह वृत्तांत सुणके, श्रीनरवर्मराजाने उसीसमय चितोडके प्रति दोय ऊंठ शीघ्रगतिवाले लेखसहित भेजे, और सजनसाधा. रण नामक श्रावकके ऊपर लेखलिखा कि हेसज्जनसाधारण श्रावक तुमारे वहां विद्वज्जनचूडामणि सर्व विद्यानिधान श्रीमजिनवल्लभगणिजी सुणतें हैं, वास्ते यह लेख तुमारेकुं लिखा है, मनोहर तुमारे गुरुमहाराजके पास विद्वानोंके मनको हरण करे इस प्रकारसें पूरण करवाके, "कंठे कुठारः कमठे ठकार” इति, यह समस्या पीछी जलदि आवे वैसा उपाय करणा परन्तु अन्यथा करणा नहिं, इस प्रकारका लेख तिन दोय ऊंठवाले पुरुषोंने संध्यासमयमे सज्जन साधारण नामक श्रावकके हाथमे दीया, और वह श्रीनरवर्मराजासंबंधि लेख साधुसाधारण श्रावकने प्रतिक्रमणवेलामें श्रीगुरुमहाराजके सामने वाचा, उसलेखका परमार्थ श्रीमान्गणिमिश्रने जाणा, और जाणने के वाद प्रतिक्रमण करणेके अनन्तरहि जलदिसें समस्या पूरण करी, जैसे कि"रे रे नृपाः श्रीनरवर्म भूप, प्रसादनाय क्रियतां नतांगैः॥ कंठे कुठारः कमठे ठकारश्चक्रे यदश्वोग्रखुराग्रघातैः" ॥१॥ __व्याख्या-हे राजाओ जिस श्रीनरवर्मराजासंबंधि घोडोंके तीक्ष्ण खुरोंके अग्रभागके प्रहारोंसें, कमठमेठकार है उस प्रमाणे तुमलोकभी अपणे कंठपर (खंधेपर ) कुहाडा धारण करो श्रीनरवमराजाको प्रसन्न करणेके लिये नम्र होके शरीरकी रक्षा करणी For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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