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लिखकर दिया, उस लेखका यह भावार्थ है कि - यथा आपकी दयार्से अपणे गुरुमहाराज के पासमें सर्वसिद्धान्त संबंधि वाचना लेकर माइयड गाम में आयाहूं, पूज्योंको मेरेपर प्रसाद करके saiपर हि मेरेकों मिलणा, वादमें गुरुश्रीनें जाणा कि क्या कारण है जिससे जिनवल्लमगणिनें इसतरे पुरुषके साथ संदेसा मेजा है, और वह जिनवल्लभगणि खुद इहां पर नहिं आया, इसलिये जाना जाता है कि इहां कोई जरूर कारण है, इसतरे विचारके दूसरे दिन सर्व लोकोंके साथ आचार्य सामने आया, जिनवल्लभगणि सामनें गया गुरु श्रीको नमस्कार करा गुरु श्रीने कुशलवृतान्त पूछा और जिनवल्लभ गणियें यथार्थ सर्व बात कही, और ब्राह्मण वगेरे लोकोंके समाधाननिमित्त ज्योतिषके बलसैं कितनाक भूतभविष्यवर्तमान संबंधि मेघवगेरेका स्वरूप इस प्रकारसे कहा कि जिस मेघादिखरूपको श्रवण करके गुरुकोभी आश्रर्य हुवा, भूतपूर्वकस्तद्वदुपचार, इति न्यायाद् गुरोरित्युक्तं, भूतकालका वर्तमान में उपचारकरणेसें गुरुको भी आर्य हूवा इत्यादि कहा, वादमें गुरुनें पुछा कि हे जिनवल्लभ तुं अपणे मठमें क्युं नहिं आया, वादजिनवल्लभ गणिने कहा, हे भगवन श्रीसुगुरुके मुखसे जिनवचनरूपी अमृतको पीके, इस समय किसतरे दुर्गतिरूप कारागार में अपने आत्माके सघनबन्धनसदृश और विषवृक्षके सदृश चैत्यवासकुं सेवणेकी इच्छा करूं, बाद में गुरुनें कहा है जिनवल्लभ मैनें यहविचारा था कि जो तेरेकों अपणा पददेके तेरे खंधपर अपणे गच्छसंबंधि मन्दिर श्रावक वगेरेका भार रखके, पीछे में सद्गुरुके पास में वसतिमार्गअंगीकारकरूंगा, वादमें जिन
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