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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरिजीके शिष्य थे, जब उनके पास दशवैकालिकजीसूत्र पढनें लगे तब वैराग्यकों प्राप्त हो गुरुकों कहा, कि साधुका आचार तो ऐसा है, ओर सिथलाचारकों क्युं धारण किया है, तब गुरुनें कहा अभी हमारा ऐसाही कर्मोदय है, तब श्रीजिनवल्लभगणि गुरुकों पूछके शुद्ध क्रिया निधान, परमसंवेगी, श्रीजिनअभयदेवसूरिजीका शिष्य होगया, शुद्धचारित्र पालता थका अनुक्रमें सकलशास्त्रकों पढके गीतार्थ हुआ, एकदा विहार करते चीतोडनगरमें आए, उहां चंडिकादेवीकों प्रतिबोधके जीवहिंसा छोडाई, चंडिका देवी पिणशुद्ध क्रियापात्र साधु जाणके बडी भक्तिवती भई, फेर उहांके संघ साधारणद्रव्यसे ७२ बहत्तर जिनालय मंडित श्रीमहावीरस्वामीका मंदिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा करी, और पिंडविशुद्धिप्रकरण १, षडशीतिप्रकरण २, सूक्ष्मार्थसाधशतकप्रकरण ३, संघपट्टकप्रकरण ४, आदि अनेकग्रंथ बनाये, तथा दशहजार १००००, प्रमाण बागडी लोकोकों प्रतिबोधके जैनी श्रावक किये, फेर उसी चित्रकूटनगर में विक्रमसंवत् ११६७ ॥ श्री अभयदेवसूरिजी के वचनसें श्रीदेवभद्राचार्यजीनें श्रीजिनवल्लभगणिजीको आचापदमें स्थापन किये छ महिनातक आचार्यपदपालके, अंतमें अणशण करके और समाधिसे कालकर के देवलोकगए, इससमयमधुकरखरतरशाखा निकली यह प्रथम गछभेदभया, ॥ ४३ ॥ श्रीजिनवल्लभसूरिजी के पाट ऊपर श्रीजिनदत्तसूरिजी हुवे, सो बड़ा दादाजीके नामसें सर्वत्र सर्वलोक में प्रसिद्ध भए, इसतरह कोटिकगछ पट्टावली में लिखा है १, और श्रीजिनदत्ताचार्यकृत गुरुपारतंत्र्य पंचमस्मरणमें २ और लघुगणधरसार्धशतकवृत्ति में और गणधर सार्धशतक बृहत् वृत्ति में ४, श्रीक्षमाकल्याणजीकृत खरतरपट्टावली में ५ और गणधर सार्धशतक मूलपाठ में ६, और उपदेशतरंगिणीमें ७ और उपदेशसीत्तरि में ८, और कल्पांतरवाच्यामें ९ खरतरगछमे हुवे और बडे प्रभावीक हुवे लिखे हैं, इत्यादि अनेक ठिकाणे नवांगवृत्तिकर्ता खतरगछमें हुवे ऐसा लिखा है । उपाध्याय ३, और गुजराति जैन इतिहास में भी १० इसीतरह है और प्राकृत अभिधानराजेन्द्रकोसमें भी ११ श्रीनवांगवृत्तिकर्त्ता श्रीअभयदेवसूरिजी के बारेमें इसतरे लिखा है, तद्यथा ॥ अभिधानराजेंद्र प्राकृतकोश में अभयदेव शब्द के अधिकार में पृष्ठ ७०६ में नवांगवृत्तिकारक पहिला आचार्य है For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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