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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ (५८५) वर्ष पीछे, याकिनी साधवीका धर्मपुत्र श्रीहरिभद्रसूरि स्वर्गवास हुए, ये आवश्यकजी मूलसूत्रादिककी बडी टीकाका, तथा चवदसोचमालीस ( १४४४ ) प्रकरणों का कर्त्ता हुए तथा इम्यारेसोपनर (१११५ ) वर्ष पीछे श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण युगप्रधान हुआ || ३१ श्रीमान देवसूरिके पाटऊपर श्रीविबुधप्रभसूरि हुआ || ३२ श्रीविबुधप्रभसूरके पाट ऊपर श्रीजयानंदसूरि हूआ || ३३ श्रीजयानंदसूरके पाट ऊपर श्रीरविप्रभसूरि हुआ सो श्रीमहावीरस्वामिसें पीछे इग्यारेसे सित्तर ( ११७० ) वर्ष औ) विक्रम संवत् सातसो ( ७०० ) वर्ष पीछे नाडोल नगर में श्री - नेमिनाथस्वामिके प्रासादकी प्रतिष्ठा करी तथा श्रीवीरात् इग्यारसो ने (११९० ) वर्ष पीछे श्रीऊमास्वातिनामक युगप्रधान हुआ । ३४ श्रीरविप्रभसूरके पाट ऊपर श्रीयशोभद्रसूरि अपरनाम श्रीयशोदेवसूरि बैठे, यहां श्रीमहावीरस्वामिसें बारसोबहुत्तर (१२७२ ) वर्ष पीछे, और विक्रम संवत्सें आठसें दो ( ८०२ ) के सालमें अणहलपुर पट्टण वनराज नामक राजानें बसाया, वनराज जैनी राजा था, तथा श्रीवीरात् बारसेसित्तर (१२७० ) और विक्रमसंवत् आठसो ( ८०० ) के सालमें भादवासुदि ३ के दिन बप्पभट्ट आचार्यका जन्म हुआ जिसनें गवालियरके आम नामा राजाकों जैनी बनाया, इनका विशेष चरित्र प्रबंध चिंता - मणि ग्रंथसें जाणलेना ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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