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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ सो बैतालीस वर्ष तक गृहस्थ रहे, और चालीश वर्ष व्रत पर्याय में रहे, तथा आठ वर्ष युगप्रधान पदवीमें रहे, सर्वायु नवे वर्ष भोगके स्वर्गमें गये, ॥ श्रीसंभूतविजयस्वाभीके पाट ऊपर, श्री भद्रबाहुखामी बैठे सो भद्रबाहुखामीने, १ आवश्यक नियुक्ति, २ दशवकालिक नियुक्ति, ३ उत्तराध्ययन नियुक्ति, ४ आचारांगकी नियुक्ति, ५ सूत्रकृदंग नियुक्ति, ६ सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति, ७ ऋषिभाषित नियुक्ति, ८ कल्प नियुक्ति, ९ व्यवहार नियुक्ति, १० दशा नियुक्ति, ये दशनियुक्तियो, और १ कल्प, २ व्यवहार, ३ दशाश्रुतस्कंध, यह नवमे पूर्वसें उद्धार करके बनाये, और एक बहुत बडा भद्रबाहु नामें संहिता ज्योतिष शास्त्र बनाया, उपसर्गहर स्तोत्र बनाया, जैनमतीयों ऊपर बहुत उपकार करा । इनहीं भद्रबाहुस्वामीजीका सगाभाई वराहमेहर हुआ, वो पहिले तो जैनमतका साधु हुवा था, फेर साधुपणा छोडके वराही संहिता बनाई और जो वराहमिहर विक्रमादित्यकी सभा का पंडित था, वो दूसरा वराहमिहर था, संहिता कारक वो नहीं हुआ, इसका सम्पूर्ण वृत्तांत परिशिष्टपर्वसें जानलेना, श्रीभद्रबाहुस्वामी गृहस्थावासमें पेंतालीश वर्ष रहे, सत्तरे वर्ष व्रतपर्याय, अरु चौदह वर्ष युगप्रधान, सर्व मिलकर छहत्तर वर्ष का आयु भोगके श्रीमहावीरस्वामीसें एकसौसित्तर (१७०) वर्ष पीछे स्वर्ग गए ॥ भद्रबाहु स्वामीके पाट ऊपर श्रीस्थूलभद्रस्वामी बैठे इनका बहुत वृत्तांत है सो परिशिष्टपर्वग्रन्थसें जान लेना, १ श्री ९ दत्तसूरि० For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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