SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९०० वेक्रियलब्धिवंत भये ॥ १४०० वादी विरुद धारक भये ॥ २२०० अवधिज्ञानी भये ॥ १७५० मनपर्यव ज्ञानी भये ।। २२०० केवलज्ञानी भये ॥ ६६८ चवदे पूर्वधारी हुये ॥ १ लाख ८३ हजार श्रावक भये ॥ ३७०००० श्राविका हुई, इत्यादिक बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेतसिखरजी पर्वतऊपर, ५०० साधुवोंकेसाथ १ मासका अनशन कीया । काउसग्ग मुद्राइं, आत्मगुणके ध्यानसे, सर्वकर्माकों खपायके, मिति फागुणसुदि १२ के दिन, ५५ हजार वर्षको आयुष्यमान पूरो करके, सिद्धि स्थानको प्राप्ति भये । शासनदेव कुबेरयक्ष । शासनदेवी धरणप्रिया । देवगण । अश्वयोनि । मेषराशि । अंतरमान ५४००००० वर्ष, सम्यक्तपायेवाद तीसरे भवमें मोक्ष गया । ॥ इति १९ मा श्री मल्लिनाथस्वामी अधिकारः ॥ १९ ॥ ॥ अथ २० मा श्री मुनिसुव्रतखामी अधिकारः॥ राजगृही नामा नगरीमें, हरिवंशी, सुमित्र नामें राजा हुवा (तिसके) पद्मावती नामें पट्टराणी भई । जिसकी कूखमें, अपराजित नामा अनुत्तर विमानसें चवके, मिति श्रावण सुदि १५ के दिन, भगवान् उत्पन्न भया । तब मातायें गजादि अग्नि शिखापर्यंत, १४ स्वप्ना प्रगटपणे मुखमें प्रवेश कर्ता हुवा देखा, पीछे सर्व दिशा सुभिक्षसमें, ज्येष्ट वदि ८ के दिन, श्रवण नक्षत्रे, जन्म कल्याणक हुवा ( उस बखत ) ५६ दिशा कुमारीयों मिलके, सूतिका महोच्छव कीया (पीछे) ६४ इंद्र, मेरु पर्वतपर भगवान् को ले जायके, जन्म महोच्छव कीया । तिस For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy