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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (पीछे) ६४ इंद्र मेरुपर्वतपर भगवानकों ले जायके जन्म महोच्छव कीया (तिस पीछे) सूर राजायें १० दिवस पर्यंत, मोटो जन्म महोच्छव करके, सर्व न्याती गोती प्रजागणकों मनसा भोजन करायके, सर्वके सन्मुख, श्री कुंथु कुमर नाम स्थापन कीया ॥ नाम स्थापनका यह हेतु है कि भगवान् गर्भमें आया, तब माता रत्नमई कुंथुवोंकी राशि देखती भई । इससें, कुंथ कुमर नाम दिया ॥ बकराका लंछनयुक्त, कनकवर्ण, शरीर प्रमाण ३५ धनुष हुवा । ३ ज्ञानसहित, महा तेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत भोगावली कर्मनिर्जरार्थे, चक्रवर्ति पद धारण करके, ६४ हजार स्त्रियांकों परण्या (पीछे ) अवसर आये लोकांतिक देवताके वचनसें, मिति चैत्रवदि ५ के दिन, हस्तनापुर नगरमें, छठ तप करके, भील्लक वृक्षके नीचे १००० पुरुषोंकेसाथ दीक्षा ग्रहण करी ( उसवखत) चोथो मनपर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, व्याघ्रसिंघके घरे, परमानक्षीरसें हुवो । १६ वर्ष छद्मस्थपणे विहार करके, फिर हस्तनापुर नगरमें आये । वहां छठ तप सहित, चैत्रसुदि ३ के दिन लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ (उसवखत) चतुर्निकाय देवगणका कीया भया समोसरणमें १२ परपदाके सन्मुख भगवान् धर्मोपदेश देके चतुविध संघकी स्थापना करी ॥ भगवानके ६० हजार सर्व साधु हुये (जिसमें ) सांब प्रमुख ३५ गणधर पदधारक भये ॥ दामिनी प्रमुख ६०६०० साध्वी हुई ॥ ५१०० वैक्रियलब्धिवंत भए । २००० वादी विरुदपद धारक भए ॥ २५०० अवधि झानी For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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