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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८ वैक्रिय लब्धि धारक भए || ३२०० वादीविरुद धारक भए || ४३०० अवधिज्ञानी भए ५००० मनपर्यवज्ञानी भए । ५००० केवलज्ञानी भए । १००० चवदे पूर्वधारी भए । २०६००० श्रावक भए ॥ ४१४००० श्राविका भई ( इत्यादिक) बहुत से जीवोंका उद्धार करके अंतसमें समेतशिखरजी पर्वतपर, ७०० साधुव केसाथ १ मासका अनशन ग्रहण कीया । काउसग्गमुद्रायें, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्वकर्माकूं खपायके, मिति चैत्रसुदि ५ के दिन, तीसलाख (३००००००) वर्षको आयुष्य पूरन करके, सिद्धिस्थानकों प्राप्त भए || शासनदेव पाताल यक्ष । शासनदेवी अंकुशा | देवगण | हस्तियोनि । मीनराशि | अंतर्मान ४ सागरोपम । सम्यक्तपायेवाद तीसरे भवमें मोक्ष गये | इनके वारे, चोथा पुरुषोत्तमनामा वासुदेव ( अरु) सुप्रभनामा बलदेव ( तथा ) मधुकैटभनामा प्रतिवासुदेव हुवा || इति ५५ बोलगभिंत श्री अनंतनाथस्वामी अधिकारः ॥ १४ ॥ ॥ अथ १५ मा श्री धर्मनाथस्वामी अधिकार: ॥ रत्नपुरीनामा नगरीमें, इक्ष्वाकुवंशी, भानुनामें राजा हुवा ( तिसके) सुव्रतानामें पट्टराणी । जिसकी कुखमें, विजयनामा अनुत्तर विमानसें चवके, मिति वैशाख सुदि ७ के दिन, भगवान् उत्पन्न हुवा । तब मातायें गजादि अग्निशिखापर्यंत १४ स्वप्ना प्रगटपणें मुखमें प्रवेशकर्त्ता देखा ( पीछे ) सर्व दिशा सुभिक्षसमें, मिति माघसुदि ३ के दिन, पुष्यनक्षत्रे, जन्मकल्याणक हुवा || उसीवखत ५६ दिशा कुमारीयों मिलके सूतिका For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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