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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार । जब तुमसे भेट हुई थी तब तो तुम्हारा चेहरा बिल्कुल साफ़ था । अब रेख निकल आई है । बहुत सुहावना लगता है । और आप महाशया ! गत वर्ष जब आपके दर्शन हुए थे तब तो स्वर्ग पहुँचनेमें आपको दो सीढ़ियाँ बाकी थीं; पर अब तो एक ही सीढ़ी बाकी है। आपकी आवाज फूटे रुपयेकी तरह बदबदाने तो नहीं लगी ? ईश्वर बचावे ! और आवाज़ वैसी हो भी जाय तो कोई पर्वाह नहीं । गंभीर समुद्रकी तरह हमलोग सबकुछ ले लेते हैं । अच्छा, तो नि:संकोच होकर हमें कोई नकल सुना दीजिये । देख तो सही, आजकल आपके गानेपर कैसी तैय्यारी है । ऐसी नकल सुनाइये कि जिसे सुनकर कलेजा काँप उठे। प० न०-कौनसी नकल सुनाऊँ, महाराज ? जयन्त-मैंने वह नकल एकबार तुम्हारे मुँह सुनी थी; पर रंगमंचपर उसको किसीने न कर दिखाया; और किया भी हो तो, बस, एक बार किया होगा; क्योंकि, मुझे याद है कि वह खेल लोगोंको पसंद नहीं आया। पर मैं तथा और भी कई नाट्यकलाभिज्ञ उस खेलको बहुत ही अच्छा समझते हैं। उसके दृश्य, नटोंके भाषण तथा अभिनय और नाटकका खूबीदार प्लाट मुझे तो बहुत ही अच्छा लगा । एक व्यक्तिने उस समय कहा था कि, इस नाटकमें न कोई अच्छा भाषण है और न अच्छे अच्छे गान ही । फिर भी मेरी राय यही है कि भाषा बहुत साफ़ थी और अच्छी थी। उसमें एक गान तो मुझे बहुत ही पसन्द आया। द्रोणाचार्यने अश्वत्थामाके मरनेकी खबर सुनी, उस समयका वह गान है । खासकर धृष्टद्युम्नके द्रोणाचार्यका वध करनेका वर्णन बहुत ही मनोहर है । अगर याद हो तो सुनाओ। मैं तबसे याद कर रहा हूँ; पर याद नहीं आता कि उसका आरम्भ कहांसे हुआ है । ( सोचता है।) For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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