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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । मुझमें इतनी योग्यता नहीं कि, मैं अपने भावोंको कवितामें तुमपर प्रकट कर सकूँ; पर विश्वास रखना, मैं तुम्हें अपने प्राणोंसे भी अधिक चाहता हूँ । तुम्हारा निरन्तर प्रेमी जयन्त । 37. मेरी आज्ञाधारी लड़कीने यह पत्र मुझे दिखला दिया । और भी जो जो बातें जयन्तने अवसर पाकर उससे कही थीं वे सब उसने मुझसे कह दी हैं । रा०—पर उसके प्रेमको वह किस दृष्टिसे देखती है ? धू० - आप मुझे किस दृष्टिसे देखते हैं ? रा० - मैं आपको आज्ञाधारी और विश्वसनीय पुरुष समझता हूँ । धू० बस, मैं भी यही चाहता हूँ कि महाराजको इस बातका प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जाय । कमलाके मुँह सुननेके पहिले ही मैं ताड़ गया था कि जयन्तका दिल उसपर लगा है; और यह बात मालूम होनेपर भी मैं यदि चुपचाप बैठा रहता, या उस भोर आनाकानी करता तो, महाराज और आप - रानी साहब, मेरे विषय में आपलोग क्या सोचते ? पर नहीं, - मैंने वैसा नहीं किया; किन्तु उन दोनोंको प्रेमजालसे बचानेका उद्योग करने लगा मैंने अपनी बेटीसे कह दिया कि जयन्त राजकुमार है । उसकी और तुम्हारी बराबरी नहीं हो सकती ; इस लिये उससे तुम्हारा विवाह होना असम्भव है । और मैंने यह भी कह दिया था कि तुम घर के अन्दर ही रहा करो - उसके सामने बहुत आया जाया न करो । यदि उसकी For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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