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दृश्य २ ]
बलभद्रदेशका राजकुमार ।
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हुआ । उन्होंने अपने भतीजेके नाम वार्षिक तीन लाख रुपयेका पारितोषिक लिख दिया; और बलभद्रदेशपर चढ़ाई करनेके लिये जो सेना इकट्ठी की गई थी उसे लेकर पोलोमपर चढ़ाई करनेकी उसे आज्ञा दी । और इस चढ़ाईपर सेना सहित महाराजके राज्यसे होकर जानेकी आशा पानेके लिये उन्होंने यह पत्र दिया है । इसीमें सब शर्तें भी लिखी हुई हैं ।
रा०-- -शाबाश ! तुम्हारे कामसे हमलोग बहुत प्रसन्न हुए । कभी शान्तिके समयमें इस पत्रको पढ़ लूंगा; और विचार करके फिर इसका उत्तर दिया जायगा । तुम लोगोंने बहुत अच्छी तरह अपना काम किया ; इस लिये हम लोग तुम्हें धन्यवाद देते हैं । जाओ, अब कुछ दिन तुमलोग विश्राम करो । आज रातको हम सब साथ ही भोजन करेंगे । जाओ, ज़रा आराम करो ।
( जय और विजय जाते हैं । )
धू० - यह काम अच्छा निपटा । अस्तु, महाराज और महारानी साइब ! राजा क्या है, कर्त्तव्य क्या है, दिन दिन है, रात रात है, और समय समय है; इन बातोंपर बहस करना मानो दिन, रात और समयको नष्ट करना है । संक्षेप में बोलना बुद्धिमानी है; और अलंकार युक्त भाषण करना अपना पाण्डित्य दरसाना है । इसलिये मैं अपनी बात संक्षेपमें ही कहूँगा । आपका पुत्र पागल है; कमसे कम मैं उसे पागल कहता हूँ ; क्योंकि सच्चे पागलपनकी व्याख्या करना और पागलको पागल कहना एक ही बात है । खैर, इस बातको जाने दीजिये । रानी - इन अलंकारोंकी ज़रूरत नहीं है । जो कहना हो संक्षेपमें कहिये ।
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