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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ५] बलभद्रदेशका राजकुमार । ३७ 66 सहायता आज भी मैं तुमसे चाहता हूँ । वह यह है कि कुछ दिनों के लिये मैं पागल बनूँगा । इस लिये यदि मुझे अपना रंग ढंग कभी बदलना पड़े या मनमाना बकना पड़े, तो ऐसे अवसरपर तुम लोग खूब सावधान रहना । मेरे विषय में कहीं ऐसी सन्देहजनक बातें न करना कि, हां हां, हम जानते हैं, वह क्यों पागल बना है । या अगर हम चाहें तो कह सकते हैं ; या किसी अमुक मनुष्यको पूछनेसे पता लग सकता है" या इसी तरह की गोलमोल बातें कहकर या सन्देह उत्पन्न करनेवाले हाथ या सिर हिलाकर मेरा सारा भेद खोल न देना । बस, तो खाओ सौगन्द कि, ' हमलोग ऐसा कभी न करेंगे ' । भूत - ( नीचेसे ) हां, सौगन्द खाओ । जयन्त-रे व्याकुल पिशाच, शान्त हो ! शान्त हो ! ( सौगन्द खाते हैं। ) महारायो, मुझपर दया रखना । परमात्मा चाहेगा तो यह अभागा जयन्त तुम्हारे प्रेमको कभी न भूलेगा । चलो, अब हम सब साथ ही साथ चलें । परन्तु एकबार मैं तुम लोगों से और भी प्रार्थना करता हूं कि कृपाकरके अपना मुँह सम्हाले रहना । हाय ! कैसा नीच विरोध ! और उसका बदला लेना विधाताने मेरे ही भाग्यमें लिखा है ! अस्तु, da आओ, चलें । पहिला अड्ड समाप्त । For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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