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रस्य १]
बलभद्रदेशका राजकुमार ।
भीम० - हमलोगोंने दो रात जो देखा क्या वह एकदम झूठ है ? अच्छा, ज़रा नीचे बैठ जाओ, और अपने कानोंके परदे खोल दो । विशा० - चलो बैठ जायँ । भीमसने, कहो, क्या कहते हो ?
भीम ० ० -- कल रातकी घटना यों हुई कि पश्चिम ओरका वह - तारा आकाशमें प्रकाश करने क्षितिजसे इतना ही ऊपर उठा था, जहां अब वह चमक रहा है । और एकका घण्टा बजा; इतने में मैं और वीरसेन.. .....
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वीर० - सावधान, सावधान ! देखो, वह फिर आ रहा है भीम० — ठीक उसी वेशमें, जिसमें हमारे स्वर्गवासी महाराज रहा करते थे ।
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वीर० - विशालाक्ष, तुम तो बड़े पण्डित हो; अब उससे बोलो न । भीम ० – क्या महाराजकी सी सूरत नहीं है ? विशालाक्ष, देखो, पहिचानो ।
विशा० - हां, ठीक वही सूरत है ! मारे डर और अचम्भे मेरा शरीर कांप रहा है
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भीम
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वीर० - विशालाक्ष, उससे बोलो ।
विशा० - अरे, तू कौन है ? इस रातमें हमारे स्वर्गवासी महाराजके सुन्दर और सिपाहियाने बानेमें यहां घूमनेवाला तू कौन है ?
मुझे परमात्माकी सौगन्ध है, बोल, तू कौन है ?
वीर० - अजी, वह नाराज हो गया ।
भीम० – देखो, वह चला ।
विशा० - अरे ठहर, तुझे मेरी सौगन्ध है, बोल बोल। (भूत जाता है)
-उससे कुछ बोलना चाहिये ।
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