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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य १ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । १५१: होनेसे तबियत घबराने लगती है और रोलाई आती है । इस जगह उसके होठ थे ! न जाने कितने बार मैंने उन्हें चूमा होगा ! हा ! घोंघा ! तू लोगोंको चिढ़ाता था ! अब क्यों नहीं चिढ़ाता ? तू नाचता था, गाता था ! अब वह तेरा नाचना और गाना कहाँ चला गया ? तेरी हँसोड़पर बातें सुन लोग दांत निपोरते थे, पर अब तूने आपही दांत निपोर दिये हैं । बोल, अब तूने एकदम उदास सूरत क्यों बना ली ? जा; शहर की स्त्रियांस जाकर कह दे कि तुमलोग खूब शृंगार करके सुन्दर बनने की हज़ार कोशिश किया करो पर अन्तमें तुम्हारी यही गति होगी । इसपर वे खिलखिलाकर हँसेंगी । हँसने दो । विशालाक्ष ! एक बात बतलाओगे ? विशा० – कहिये, महाराज, क्या बात है ? जयन्त- क्या सिकन्दरशाह कब्र में गाड़ेजानेपर ऐसा ही दीखता होगा ? विशा० हाँ, और क्या ? ऐसा ही दीखता होगा | जयन्त — और उसे ऐसी ही बदबू आती होगी ? उँ: ! - ( नाकमें कपड़ा लगाकर खोपड़ी नीचे रखता है | ) विशा० -बस, ऐसी ही बदबू आती होगी । जयन्त---विशालाक्ष, देखा, मनुष्यकी क्या क्या दुर्गति होती है ? क्यौंजी, कल्पनाले क्या यह बात सिद्ध नहीं हो सकती कि सिकन्दर ग्राहकी मिट्टी किसी बिलके बन्द करनेमें काम आई होगी ?. ● विशा -हो क्यों नहीं सकती, पर बड़ी तरद्दुद उठानी पड़ेगी । जयन्त-नहीं नहीं, इसमें रत्तीभर भी तरद्दुद न होगी । जरा सूक्ष्म विचार करना चाहिये । देखो, इस तरहः - सिकन्दरवाह. For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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