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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य १] बलभद्रदेशका राजकुमार। १४७ जयन्त-और यह भी हो सकता है कि यह खोपड़ी किसी भाग्यशालिनी स्त्रीकी हो ; पर इस समय उसके भाग्यमें फावड़ेकी मार ही बदी जान पड़ती है । अगर देखा जाय तो यह स्थित्यन्तर ध्यानमें रस्त्रने योग्य है । विशालाक्ष ! क्या इन हड्डियोंकी यही इज्जतं है कि अन्तमें फावड़ेकी मार खायँ । ओफ़ ! इन विचारोंसे तो सिर दर्द करने लगा ! प० म०-( गाता हुआ दूसरी खोपड़ी उपर फेंकता है।) यह फावड़ा फरसा कफन वो कब सब सामान है। उसका जो दुनियामें इसी मिट्टीका एक मेहमान है ।। जयन्त-देखो, यह दूसरी खोपड़ी । वह किसी वकीलकी भी हो सकती है । क्यों विशालाक्ष ? अब इसकी वकालत, पेचीली और कानूनी बातें और लोगोंसे धन लूटनेकी युक्तियाँ सब क्या हो गई ? अब इस गँवार आदमीके फावड़ेकी मार यह कैसे चुपचाप सह लेता है ! उसे फौजदारीकी धमकी क्यों नहीं देता ? हां, इसने अपने ज़मानेमें बहुतसी जमीन खरीदी होगी ! कई लोगोंसे दस्तावेज़ लिखवाये होंगे ! और बहुतेरोंसे उनकी जायदादका अपने नाम रेहननामा लिखवा लिया होगा ! इतनी हाय हाय करके इतना धन बटोरनेपर भी अन्तमें केवल साढ़े तीन हाथ जमीनका ही स्वामित्व उसके हाथ रह गया ? वे सब दस्तावेज़ और रेहननामे अब इसके किस काम आगे ? जितनी बड़ी सन्दूकमें इसके जायदाद सम्बन्धी सारे कागज़ भी नहीं अट सकते उतने बड़े गडहेपर ही अब इसका अधिकार रह गया ! हाः ! विशा०-बस, उतना ही बड़ा-एक बालभर भी अधिक नहीं। For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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