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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १] बलभद्रदेशका राजकुमार । १४५ टिटी हजारों आदमियोंको खपाकर फिर भी ज्योंकी त्यों बनी रहती है I प० म० - वाह ! सचमुच तुम्हारी बुद्धि क्या कमाल है ! वह टिरूटी बहुत अच्छी होती है; पर किसके लिये अच्छी होती है ? जो बुरा करते हैं उनके लिये वह अच्छी होती है । तुम कहते हो कि वह टिरूटी मन्दिरोंसे भी अधिक टिकाऊ होती है, यह बुरा करते हो; इस किये वह टिल्टी तुम्हारे लिये अच्छी होगी । अच्छा, फिर सोचो । दू० म० - अच्छा, 'पेसराज, लोहार, और बढ़ई इन तीनोंसे अधिक मजबूत काम कौन बनाता है ? प० म० - हाँ कह डालो; किसका काम अधिक टिकाऊ होता है ? दू० म०–अच्छा, अब मैं कह सकता हूँ । प० म० - कहो, कहो । ० म० - हः हः, नहीं कह सकता । ( जयन्त और विशालाक्ष कुछ दूरीपर प्रवेश करते हैं । ) प० म०—– अब, इसमें फ़जूल माथापच्ची मत करो; क्योंकि तुम्हारे ऐसे गदहे लाख मार खानेपर भी जल्दी जल्दी पैर नहीं बढ़ा सकते 1 अच्छा, अब अगर फिर कोई तुमसे ऐसा सवाल करे तो कह देना 'कम खोदने वाले ' या ' समाधि बनाने वाले ', समझे ? जो घर वे बनाते हैं वह प्रलय कालतक बना रहता है । अच्छा, दोस्त, Featयामें बाकर एक बोतल शराब तो ले आओ । ( दूसरा मज़दूर जाता है। ) ( पहिला मजदूर खोदता हुआ गाता है । ) हा ! जब युवा था प्रेमिकासे प्रेम करता था तभी । सप्रेम में होकर मगन मैं भूल जाता था सभी ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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