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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १] बलभद्रदेशका राजकुमार । १४३ उसका क्रोध शान्त करने में कैसे कैसे परिश्रम करने पड़े ! अब फिर, मुझे डर है कि, उसका क्रोध कहीं भड़क न जाये; इसलिये, भाओ, उसके पीछे पीछे चलें । ( जाते हैं । ) चौथा अंक समाप्त | ::---- पाँचवाँ अंक । पहिला दृश्य । स्थान- स्मशान 1 दो मजदूर फावड़ा लिए हुये प्रवेश करते हैं । पहिला मजदूर - क्योंजी, जिसने आत्म हत्या की क्या वह शास्त्रोक्त विधिसे गाड़ी जायगी १ दूसरा मजदूर - हाँ हाँ, वह उसी तरह गाड़ी जायगी । और इसलिये गड़हा खूब अच्छी तरह खोदी । इसका विचार करने के लिये पंच चुने गये थे; और उनकी यही राय है कि वह शास्त्रोक्त विधि ही गाड़ी जाय 1 प०म० - जब तक वह अपनी रक्षा करनेके उद्देश्यसे आपको न डुबो ले तबतक यह बात कैसे है। सकती है ? दू० ० म० – क्यों ? पंचोंकी यही राय है । प० म० - उसने अपनी रक्षा करनेके किया होगा, नहीं तो यह बात कभी नहीं हो उद्देश्यसे ही यह काम सकती थीं । क्योंकि For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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