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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org दृश्य ७ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । १३७ इसका क्या मतलब ? क्या सबके सब लौट आये ? या किसीने चाल चली है, और असल में यह कुछ भी नहीं है ? -आप हस्ताक्षर पहिचानते हैं ? Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चन्द्र -- रा०-हाँ हाँ, यह जयन्तका ही हस्ताक्षर है । ' नङ्गा ! फिर यहाँ लिखा है, ' अकेला ' | ( पत्र दिखाकर ) देखो, तुम्हारी बुद्धि कुछ काम देती है ? चन्द्र०. ● - नहीं महाराज, मेरी बुद्धि कुछ भी नहीं काम देती । पर वह आवे तो सही; मुझे ऐसा हो गया है कि मेरा और उसका कब सामना होगा और कब में उसे मुँहपर कहूँगा कि तूने ऐसा ऐसा काम किया है ! रा रा०- - चन्द्रसेन ! अगर ऐसा हो तो क्या करना चाहिये या क्या नहीं करना चाहिये; इस विषय में मेरा कहना मानोगे ? चन्द्र० - क्यों नहीं ? पर अगर आप कहें कि 'जानेदो, चुप हो रहो' तो यह बात मैं कभी नहीं मानूँगा । • ' और इसमें रा० -- तुम्हारी आत्मा जब शान्त होगी तब तो मानोगे ? अगर वह समुद्रयात्रामें कुछ बाधा पड़ने से लौट आया हो और फिर उसका जानेका विचार न हो तो मैंने उसके लिये एक ऐसी अच्छी दवा सोच रक्खी है कि जिससे वह फिर कभी बच ही नहीं सकता । और इस तरह उसकी मृत्यु होनेसे हम जनापवादसे बचे रहेंगे; और उसकी मा भी उसे दैवयोग समझकर शान्त हो रहेगी । चन्द्र० - महाराज ! मुझे आपका कहना स्वीकार है; पर अगर वह मेरे ही हाथों मारा जाय तो इससे बढ़कर और क्या बात होगी ! - बस, फिर किस बातकी कमी है ? मैंने ऐसी ही युक्ति For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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