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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ५] बलभद्रदेशका राजकुमार । १३१ चन्द्र०-बहिन ! अगर तुम होशमें रहकर सारा हाल कहती तो मुझे इतना क्रोध न आता जितना कि तुम्हारी यह दीनावस्था देख आ रहा है। कमला-( गाती है) जो तुम उन्हें बुलाया चाहो । गा गा कर बस खूब पुकारो ॥ चन्द्रः-आह ! इसकी बेतुकी बातें तो मेरे खूनको और भी जला रही हैं। कम.--यह लो, गुलामकी कली; इसे मेरे प्रेमका स्मरणचिन्ह जानकर अपने पास रक्खे रहना, और मुझे एकबारगी भुला न देना । और यह भी लो, तुम्हें एक जड़ा दिये देती हूँ , जिससे तुम बिचार पाओगे। चन्द्र०—पागलपनमें भी इसके विचार और इसकी स्मरणशक्ति इससे अलग न हुई ! ___ कम-लो, यह सौंफका फूल ! और यह बेलेका फूल ! ( रानीसे ) देखिये, इसे ब्राह्मी कहते हैं। इसमेंसे थोड़ा आप लीजिये और थोड़ा मैं रखती हूँ । यह बड़ी अनमोल चीज़ है ; इसे अपने गलेमें बाँध लीजिये । जिसमें आपमें कुछ लजा बनी रहे-आप एकदम निर्लज न हो । और यह लीजिये, इस फूलका नाम है ' सदाबहार'। मैं आपको कुछ बनपशेके फूल भी देती, पर जिस दिन मेरे पिताकी मृत्यु हुई उसै दिन वे सबके सब मा गये । सुनती हूँ, उनका अच्छा अन्त हुआ। चन्द्र-आह ! चेहरा कितना फीका पड़ गया है ! दुःखकी कोई सीमा नहीं-कैसे भयंकर विचार हैं ! यह सब देखकर पत्थर भी पिघल जायगा। For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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