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चित् ही दृग्गोचर हो । उसो प्रकार चातुरीहीन सरलता, वेदान्तकी मोहिनी, कल्पनाओंका सम्राज्य, असहाय अबलाकी पितृभक्ति और मानसपतिप्रेम, नीच हृदय और मीठी बोली, विचारहीन वीर, आदिका कैसे सर्वनाश होता है उसके बड़े ही उत्तम उदाहरण इस नाटकमें हैं जिनका प्रभाव पाठक और प्रेक्षकपर पड़ता ही है । उसी प्रकार भगिनीप्रेम, पत्नीप्रेम और मित्रप्रेमके और अच्छे उदाहरण कहां मिल सकते हैं ? इन विविध पात्रोंकी नानाविध मनोरचना और कार्यकलापके अतिरिक्त महाकवि शेक्सपियरके जीवन-मृत्यू संबंधी बिकट प्रश्नोंपर विचार हैम्लेटके मुखसे वारंवार प्रकट होकर “साधारण पाठककों भी अपने संकुचित संसारसे ऊंची दुनियां में उठाले जाते हैं । इस प्रकार यह नाटक साक्षर, निरक्षर, विद्वान अविद्वान समीके प्रशंसापात्र हुआ है।
नाटकमें गद्य और पद्य दोनों हैं । गद्यका अनुवाद गद्यमें किया ही गया है परन्तु शेक्सपियरकी पद्य-रचनाका हिन्दी पद्यानुवाद करना कोई साधारण बात नहीं है इसलिये प्रायः पद्योंका भी गद्यमैं ही अनुवाद किया गया है। कुछ पद्य अवश्य ही पद्यानुवादित हुए हैं और उनके लिये हम पं० रूपनारायण पाण्डेय और पं० गोविन्द शास्त्री दुगवेकर महाशयको सहृदय धन्यवाद देते हैं। अब अनुवादकी पद्धति और भाषाके विषयमें लिखकर प्रस्तावना पूरी करते हैं।
किसी विदेशी भाषासे स्वकीय भाषामें अनुवाद करना कठिन काम है; क्योंकि विदेशी भाषा विदेशियोंके ही आचार, विचार, भाव और संस्कारोंसे पूर्ण होती है और ऐसे आचार, विचार, भाव अथवा संस्कार प्रायशः दूसरे किसी देशके साथ पूर्णरूपसे नहीं मिलते । हैम्लेट अंग्रेजी
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