SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार । 1 वही पुरुष धन्य है जो हज़ार दु:ख सहता हुआ भी अपनी विवेकबुद्धिकी आज्ञाको नहीं टालता | क्या तुम मुझे ऐसे मनुष्यका नाम बता सकते हो जिसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर ये छः विकार न हों ? अगर बता सकते हो तो बता दो, मैं तुम्हारे समान उसे भी अपने अन्तःकरणमें ही नहीं —— किन्तु उसके भी अन्तर्पट में स्थान दूँगा | खैर, इस विषयकी चर्चा ज़रूरत से अधिक हो चुकी; अब हमें अपने कामकी बातोंपर ध्यान देना चाहिये । आज रातको चाचाजीके सामने एक ऐसा नाटक करानेका विचार है, जिसका एक दृश्य मेरे पिताकी मृत्युसे बहुत कुछ मिलता जुलता है । तो अब इसमें तुम्हारा यही काम रहेगा कि नाटकके आरम्भ होनेसे उसके खतम होने तक मेरे चाचाजीके चेहरेपर खूब कड़ी नज़र रखना । उसमें एक भाषण ऐसा है कि जिसे सुनते ही उनके चेहरेपर उनके गुप्त अपराध चमकने लगेंगे । और अगर ऐसा न हो तो समझ लेना कि मेरी कल्पनाएं किसी और वह भूत भी पहिले दर्जेका झूठा और लुच्चा था। इसका आपही आप निर्णय हो जायगा । हमें अपने काम में बिल्कुल कसर न करनी चाहिये । देखना, खेल देखने में गाफिल हो कर अपना कर्त्तव्य न भूल जाना । कामकी नहीं; खैर, खेल हो चुकनेपर - विश्वास रखिये, महाराज ! खेलके समय मैं उनके ८३ विशा०- चेहरे के सिवा और कुछ भी न देखूँगा । -- जयन्त — देखो, वे लोग नाटक देखनेकी तैय्यारी कर इधर ही आ रहे हैं। तो अब मैं पागल बन जाता हूँ। तुम भी कोई अच्छी सी जगह देखकर बैठ जाना । For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy