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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार। प्रशंसा करते हैं ; पर यदि देखा जाय तो उनमें रत्तीभर भी गुण नहीं होता । उनका बोलना चालना, गाना बजाना, पोशाक और अभिनय आदि सभी बातें विचित्र ही होती हैं । ये लोग मनुष्य-स्वभावकी इतनी बुरी तरह नकल करते हैं कि उसे देखकर रसिक प्रेक्षकोंकी तबियत चिढ़ उठती है। प०नट-महाराज ! हमारी मण्डलोंमें अब इन सब बातोंका बहुत कुछ सुधार हो गया है । जयन्त-अजी ! बहुत कुसे काम नहीं चलेगा; उसकी एक एक त्रुटि चुन चुनकर निकाल डालनी चाहिये । तुमलोगोंमें जो विदूषकका काम करता हो उसे उतना ही बोलना चाहिये जितना उसके लिये नियत कर दिया गया हो। क्योंकि कई एक विदूषक ऐसे मूर्ख होते हैं कि कुछ अनजान प्रेक्षकोंके हँसानके लिये वे पहिले आप ही दांत निपोर देते हैं । ऐसे निरर्थक हँसनेसे प्रेक्षकोंका ध्यान नाटककी मुख्य मुख्य बातोंपरसे हट जाता है । नाटक तो वे पूरा देख जाते हैं पर उनके हृदयपर उसका कुछ भी असर नहीं पड़ता । ध्यान रहे, ऐसा करना बहुत ही बुरा है। ऐसा करनेवाले अपनेको बुद्धिमान् और धन्य समझते हैं; पर यह उनकी केवल भूल ही नहीं वरन् महा मूर्खता है । खैर, तुम लोग आगे चलकर अपने खेलकी तैय्यारी करो; मैं भी थोड़ी देरमें आ जाता हूँ। (नट जाते हैं।) (धूर्जटि, नय और विनय प्रवेश करते हैं।) जयन्त-क्यों महाशय ! क्या समाचार है ? क्या महाराज भी नाटक देखने आयेंगे ? धू०-अकेले महाराज ही नहीं-रानी साहब भी आनेवाली हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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