SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 533. पंच महाव्रत :- साधु साध्वी जीवन पर्यंत पाँच महाव्रतों की भीष्म प्रतिज्ञा का पालन करते हैं । वे पाँच प्रतिज्ञाएँ ही पाँच महाव्रत कहलाती हैं । I 1) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से हिंसा के त्याग की प्रतिज्ञा । 2) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से झूठ नहीं बोलने की प्रतिज्ञा । 3) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से चोरी के त्याग की प्रतिज्ञा । 4) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से मैथुन के त्याग की प्रतिज्ञा । 5) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से परिग्रह के त्याग की प्रतिज्ञा । 534. पंचमुष्टि लोच :- तीर्थंकर परमात्मा जब दीक्षा लेते हैं, तब चार मुष्टि से मस्तक के बाल और एक मुष्टि द्वारा दाढ़ी मूंछ के बालों का लोच करते हैं । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 535. पंचाचार :- साधु साध्वी के लिए प्रतिदिन पालन करने योग्य पाँच आचार हैं- 1) ज्ञानाचार 2) दर्शनाचार 3) चारित्राचार 4 ) तपाचार और 5) वीर्याचार | - 536. पंचास्तिकाय :- 14 राजलोक रूप यह विश्व पंचास्तिकाय रूप है । 1) धर्मास्तिकाय 2) अधर्मास्तिकाय 3 ) आकाशास्तिकाय 4) पुद्गलास्तिकाय 5) जीवास्तिकाय । अस्ति = प्रदेश, काय = समूह ! प्रदेशों के समूह को अस्तिकाय कहते हैं । 54 1) धर्मास्तिकाय :- जीव और पुद्गल को गति में सहायता करता है । 2) अधर्मास्तिकाय :- जीव और पुद्गल को स्थिरता में सहायता करता है । 3) आकाशास्तिकाय :- जीवादि पदार्थों को अवकाश प्रदान करता है । 4) पुद्गलास्तिकाय :- औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण, भाषा, श्वासोच्छ्वास और मन ये पुद्गल की आठ वर्गणाएँ हैं । - 5) जीवास्तिकाय :- जीव के आत्म प्रदेशों के समूह को जीवास्तिकाय कहते हैं । 537. पुण्यानुबंधी पुण्य :- जिस पुण्य के उदय में नवीन पुण्य का बंध हो, उसे पुण्यानुबंधी पुण्य कहते हैं । इस पुण्य के उदय से जीवात्मा को उच्च प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है, फिर भी वह आत्मा उन सुखों में आसक्त For Private and Personal Use Only
SR No.020397
Book TitleJain Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherDivya Sanesh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy