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533. पंच महाव्रत :- साधु साध्वी जीवन पर्यंत पाँच महाव्रतों की भीष्म प्रतिज्ञा का पालन करते हैं । वे पाँच प्रतिज्ञाएँ ही पाँच महाव्रत कहलाती हैं । I 1) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से हिंसा के त्याग की प्रतिज्ञा । 2) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से झूठ नहीं बोलने की प्रतिज्ञा । 3) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से चोरी के त्याग की प्रतिज्ञा । 4) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से मैथुन के त्याग की प्रतिज्ञा । 5) जिंदगी भर के लिए मन, वचन और काया से परिग्रह के त्याग की प्रतिज्ञा । 534. पंचमुष्टि लोच :- तीर्थंकर परमात्मा जब दीक्षा लेते हैं, तब चार मुष्टि से मस्तक के बाल और एक मुष्टि द्वारा दाढ़ी मूंछ के बालों का लोच करते हैं ।
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535. पंचाचार :- साधु साध्वी के लिए प्रतिदिन पालन करने योग्य पाँच आचार हैं- 1) ज्ञानाचार 2) दर्शनाचार 3) चारित्राचार 4 ) तपाचार और 5) वीर्याचार |
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536. पंचास्तिकाय :- 14 राजलोक रूप यह विश्व पंचास्तिकाय रूप है । 1) धर्मास्तिकाय 2) अधर्मास्तिकाय 3 ) आकाशास्तिकाय 4) पुद्गलास्तिकाय 5) जीवास्तिकाय । अस्ति = प्रदेश, काय = समूह ! प्रदेशों के समूह को अस्तिकाय कहते हैं ।
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1) धर्मास्तिकाय :- जीव और पुद्गल को गति में सहायता करता है । 2) अधर्मास्तिकाय :- जीव और पुद्गल को स्थिरता में सहायता करता
है ।
3) आकाशास्तिकाय :- जीवादि पदार्थों को अवकाश प्रदान करता है । 4) पुद्गलास्तिकाय :- औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण, भाषा, श्वासोच्छ्वास और मन ये पुद्गल की आठ वर्गणाएँ हैं ।
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5) जीवास्तिकाय :- जीव के आत्म प्रदेशों के समूह को जीवास्तिकाय कहते हैं ।
537. पुण्यानुबंधी पुण्य :- जिस पुण्य के उदय में नवीन पुण्य का बंध हो, उसे पुण्यानुबंधी पुण्य कहते हैं । इस पुण्य के उदय से जीवात्मा को उच्च प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है, फिर भी वह आत्मा उन सुखों में आसक्त
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