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शांतिनाथना.
॥ ४१ ॥
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अंतेवासी सीद्धां, साधवी चउदस्य सार; दीन दीन तेज सवायुं दीपें, ए प्रभुनो परीवार रे हम|चडी ॥ २३ ॥ त्रीश वरस ग्रहवासें वसीयां, बार वरस छद्मस्थ; त्रीश वरश केवल बेंतालीश, वरस तें खमणावंते रे हमचडी ॥ २४ ॥ वरस बहोतेंर केरुं आयुं, वीर जिणंदनुं जांणो; दिवाली दिन स्वाती नक्षत्रे, प्रभुजीनुं निर्वाण रे हमचडी ॥ २५ ॥ पांच कल्याणक इम वखाण्यां, प्रभुजीनां उलासे; संघतणां आग्रहे हरख भरि, सुरत रही चोमासुं रे हमचडी ॥ २६ ॥
कलश – इम चरम जीनवर सयल सुखकर थुण्यों अती उल्लट भरी, आषाढ उजल पंचमी दिन संवत सत्तर त्रिहोत्तरें; श्रीवीमल विजय उवझाय पंकज भमर सम सुभ शीशए, रांम वीजय जीन वरनें नामें लही अधीक जगीशए ॥ २७ ॥
" इति श्री महावीर स्वामि पञ्च कल्याणक स्तवनम्'
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|पंच क०
स्तवन.
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