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________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिना थना. ॥ २३ ॥ www.kobahrth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलश -- भले स्तवन कीधुं नाम दिधुं गौतम प्रश्नोत्तर सहि; संवत् सिद्धि मुनि अंग चंदे, | (१६७८) भांद्रवा शुदि द्वितीया तहीं ॥ ७६ ॥ तप गच्छ तिलक समान सोहें, श्री विजयानंद सूरी सरु, सागणनो सुत ऋषभ श्रावक कहें गच्छ मंगल करुं ॥ ७७ ॥ "इति श्री गौतम प्रश्नोत्तर रुप बार आरानुं स्तवन संपूर्णः” " अथ श्री अक्षयनिधि तपनुं स्तवन' 35 दुहा— श्री शंखेश्वर शिर नमी, कहुं तप फल सुविचार; अक्षयनिधि तप भाखीयो, प्रवचन सारोद्धार ॥ १ ॥ तप तपता अरिहा प्रभु, केवल नाणने हेत; नाण लही तप तनें भजि कियो, शिवरमणि संकेत ॥ २ ॥ तिम सुंदरी परें तपकरो, अक्षय निधि गुणवान; श्रुत केवलिंएं जे रच्यो, कल्पसूत्र बहु मान ॥ ३ ॥ ढाल — ॥ १ ॥ रुडीने रढियालीरे वहाला तारी वांसली रे, ॥ ए देशी ॥ जंबु भरतेरे नयरी राजगृही रे, संवरसेठ वसें एकसार; गुणवति नारीरे, कठण आजीविका रे, घर दालिद्र तणो For Pitvate And Personal Use Only पंच क० स्तवन. ॥ २३ ॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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