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रोहिणी
के ॥ विधिश्युं पुस्तक पूजीये ॥ तो लहीये हो शिवपुर तहतीककें ॥ तप करीयें रोहिण तणो ॥३॥ स्तवनम् सेवा कीजे साधुनी ॥ वली दीजे हो मुह मांग्या दानके ॥ संतोषीजे साहमी ॥ मनरंगें हो करीयें। पकवान्नके ॥ तप करीयें रोहिण तणो॥४॥पाटीपोथी पूछणो ॥ मसी लेखण हो झिलमिल सुजगीशके ॥ नवकारवाली वीटणा ॥ गुरु आगल हो धरीये सत्तावीसके ॥ तप करीयें रोहिण तणो ॥ ५॥ चोधुव्रत पण तिणदिने ॥ इम पाले हो मन धरीय विवेकके ॥ इण विधि रोहिण आदरें॥ ते पामें हो आणंद अनेकके ॥ तप करीयें रोहिण तणो ॥६॥
ढाल-४-चोथी॥शील कहे जग हुं वडो-ए देशी॥ इम महिमा रोहिण तणो ॥ श्री ज्ञानीगुरु प्रकाशेरे ॥ चित्रसेन तप आदर्यो ॥ वासुपूज्य तीर्थकर पासेरे ॥ इम महिमा रोहिण तणो ॥ए आंकणी ॥१॥ इण परें रोहिण आदरी ॥ उपर उजमणुं की, रे॥चित्रसेन ने रोहिणी॥मनशुद्धे संजम लीधुरे ॥इम महिमा रोहिण तणो ॥२॥ आठे पुत्रे आदरी ॥ दिक्षा बारमा जिनवर आगेरे ॥ वली नानाविधि तपकरे ॥ जिनधर्म तणी मति जागेरे
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