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________________ ShiMahaveJainrachanaKendra Acharya Sh Kaisagers Gyanmandi स्तवनम् श्री रोहिणी ॥१९६॥ अने राजानो वली ॥ सुहगुरु भाखे पाछले भव रोहिणी तप आदयों ॥ तपतणी शक्ते साधु भक्ते तुमे भवसायर तर्यो ॥ ५॥ ढाल पूर्वली-कहे राजारे किम रोहिण तप कीजीये ॥ विधि भाखोरे जिम तुम्ह पासे लीजीयें ॥ तव मुनिवररे विधि रोहिणी तपतणी ॥ इम जपेरे चित्रसे ॥त्रटक-राजाभणी विधि एह जंपे चित्रसेन मन भाव ए॥ उपवास कीजे लाभ लीजे भली भावना भाव ए॥बारमा जिनवर तणी प्रतिमा पूजीएं मन रंगश्युं ॥ सातवर्षा लगे कीजे तजी भली आलस अंगश्युं ॥६॥ ढाल-३-त्रीजी ॥ साहेल्यां हे आंबो मोरीयो-ए देशी ॥ | तप करीएं रोहिण तणो ॥ वली करीये हो उजमणो सारके ॥ तप करतां आति टले ॥ तिण करीएं हो तिणसेती प्यारके ॥ तप करीयें रोहिण तणो॥ ए आंकणी ॥१॥ देव जुहारो देहरे जिन आगल हो पूजो वृक्ष अशोककें ॥ गुणगुं. बारमा जिनतj॥ भला नैवेद्य हो धरीये थोकके ॥ तप करीयें रोहिण तणो ॥२॥ केशरचंदन चरचीये ॥ कीजे आगे हो आठे मंगलीक ॐॐॐॐॐॐॐडल ॥१९६॥ For Pavle And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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