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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra Acharyan ka mandi शांतिना- ढाल-पहेली ॥धन धन्य संप्रति साचो राजा॥ ए देशी ॥ श्रीजिन, शासन जग जयकारी, पंचक० थना. स्याद्वाद शुद्ध रूप रे; ॥ नय एकांत मिथ्यात्व निवारण, अकल अभंग अनूपरे ॥ श्री० ॥ स्तवन. ॥१५॥ ॥१॥कोइ कहे एक काल तणे वशे, सकल जगति गति होयरे; काले उपजे कालेविणसें, अवर न कारण कोय रे श्री० ॥ २॥ काले गर्भ धरे जग वनिता, काले जन्मे पूत्र रे; काले बोले काले चालें, || कालेंझ, ले घर सूत्र रे श्री० ॥३॥ काले दूध थकी दहीं नीपजे, काले फल परि पाक रे, विविध पदारथ काले उपजे, अंते करें बे बाक रे ॥ श्री०॥ ४॥ जिन चोवीसी ए बार चक्कवइ, वासु देव 3/ बलदेव, रे, कालें केवली कोइ न दीसें, जस करतां सुर सेवरे ॥ श्री० ॥ ५॥ उत्सर्पिणी अवस प्पिणी आरो, छे जू जुइ भांति रे; षड़ ऋतु काल विशेष विचारो, भिन्न भिन्न दिन राति रे॥श्री० KI॥६॥ काले बाल विलास मनोहर, जोवने, काला केस रे; घड पणे वली पली वपु, अति दुर्बल, शक्ति नहीं लव लेश रे॥ श्री०॥७॥ ढाल-बीजी॥झांझरीया मुनीनी देशी॥तव स्वभाव वादी वर्दैजी, काल किस्युं करेरंक; वस्तु स्वभावें ॥१५॥ For Pavle And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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