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SM Mahavam
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Acharya Sh Kailasagar
Gyanmandi
संयम- श्रेणीनुं
स्तवनम्
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गाथा-सूरत मांहिं सूरय मंडण, श्रीजिनविजय पसायो; विजय दयासूरी राजे जग- है। अर्थ पति, उत्तमविजय मलायोरे-भले वीर० ॥११॥
सहित भावार्थः-श्रीसूरत बंदिरे श्रीसूर्यमंडण पार्श्वनाथनी स्मृति-प्रणति-महिमाए तथा पं० श्री खीमा विजय गणिशिष्य रत्न संप्रति वंद्यमान चिरंजीवी परमोपकारी पं० जिन विजयगणिए उद्यमकरी प्रथम अभ्यास कराव्यो. जेम मातपिता बालकने प्रथम पग मंडावे तथा बोलतां शिखवे तेम गुरु आदिए उपगार कीधो श्रीतपागच्छाधिराज भट्टारक श्री विजय जगपति विजयदयासूरीराजे जगपति जगत् परमेश्वर श्री वीरस्वामी मुनी उत्तमविजये महाव्यो. गायो स्तवन गोचर कीधो. ए स्तवन अमछरी गीतार्थ सरणहोजो जे कोइ भणे अथवा भणतां भणावतां तेहने संयम श्री भूषित थइ सहजानंद मोक्ष सुखने पामे ॥ ११॥ सर्वगाथा-५१॥
____ "इति श्री सयमश्रेणि गर्मित श्रीवीरजिन स्तवन सम्पूर्ण"
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