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ShiMahayeJainrachanaKendra
Acharya Sh Kailasager
Gamandi
संयमश्रेणीनुं स्तवनम्
RECAREERS
॥१७५॥
श्रीखिमाविजय गणि शिष्य रत्नपं० श्रीजिनविजयगणिनां वचनथी मनी उत्तमरिजरना चित्तमा यंत्रनी स्थापना पेठी. स्थिरपणे रही.
____ "इति श्री प्रथमढाले षट्स्थानकप्ररूपणा समाप्तम्" ढाल-३-त्रीजी ॥धन्य पूरमारे शेठ धनेश्वर शुभमति ॥ एकवीसानी ए देशी ॥ आतम रामीरे शिव विसरामी नित्य नमुं, प्रभूजी स्तवतारे पाप पोताना निगमुं; षड़ स्थानकरे जे अहठाण परुपणा, सुणो सयणारे वयणा कल्पनी भाष्यनां ॥१॥ | भावार्थः-बीजी ढालनी यंत्र स्थापना करतां स्थूल बुद्धिने पण सुखे समजाय हवे एकांतरादिक मार्गणा कोड प्रछे तेने सुखे कही शकीए तेमाटे वीरप्रभुनी स्तवना करतां थकां अधस्तन स्थान प्ररूपणानी ढाल कहिए छीए.
"शुद्ध निर्मल निःकलंक आत्म खभावी रमण शील निरूपद्रव स्थान क्षेत्रथी उर्द्ध लोकाग्र
R॥१७५॥
GENER
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