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साहत
संयम- वस्तु स्वभाव प्रकाशक भासित लोगा लोग, वीर जगत गुरु भोगवे रत्न त्रयीनो भोग; || अर्थ श्रेणीनुं संयमना षट् स्थानक सूक्षम बुद्धि गम्य, स्व परविबोधन हेते स्था' यंत्र सुरम्य ॥१॥ स्तवनम् भावार्थ:-सदसदादिक अनंत धर्मात्मक वस्तु खभाव तेहनो प्रकाशक तथा केवल ज्ञान ॥१७१॥
आदर्शमां भाख्योछे जे लोकालोक जेणे एवा श्री वीर परमेश्वर जगतनो गुरु भावरत्न त्रयीनो आखाद अनुभवेछे “सम्यग् ज्ञानं यथार्थाऽव बोधः” “सम्यग् दर्शनं तत्त्वप्रतीतः” “सम्यग् चारित्रं निज वरूप, रमण स्थिरता रूपं” इति रत्नत्रयी संयमनी षट् वृद्धिनां स्थानक तिक्ष्ण बुद्धिए गम्यछे ते माटे पोताने तथा परने समजाववाने काजे असत्कल्पनाए मनोहर यंत्रस्थापुंछं तथा अनंत भाग वृद्धि स्थाने मीडां असंख्यात भाग वृद्धिस्थाने एकडा संख्यात भाग वृद्धिस्थाने बगडा संख्यात गुण वृद्धिस्थाने प्रगडा असंख्यात गुण वृद्धिस्थाने चोगडा अनंतगुण वृद्धि स्थाने पांचडा असत्कल्पनाए चारमीडा ने अनंत भाग वृद्धि कंडक ४ एकडे असंख भाग वृद्धा इत्यादि संज्ञा ॥१॥
॥१७॥ * गाथा-भाग अनंत वृद्धिना ठाण छे कंडक सार, छे यद्यपि ते असंख्य ठq तस
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