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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobateh.org. Acharya Sh Kailasager Gamandi चैत्यप अबंदाच- लउत्पत्ति रिपाटी स्तवनम् महिमा जिन कहे, षट्दर्शन जय जय मानीरे; सघला मतमा सारिखो, ए वात नहीं छे छानीरे॥ अर्बद ॥ ५॥ सिंहिं बृहस्यति संचरि, त्यारे लोक आवे लख कोडीरे; पूजे आराधे भावस्युं, प्रणमें बे कर जोडीरे ॥ अर्बुद ॥६॥ आबु गिरिवर गावतां, में सफल करी निज जीद्वारे; पुण्य संचय प्रगट्यो थयो, सफल जन्म मुज दीहारे ॥ अर्बुद ॥७॥ विधिपक्ष गच्छ जग परगडो, सुद्ध सिद्धांत पक्ष पालेरे; पूज्य शिरोमणि परगडा, निज गच्छ कुल अजूआलेरे ॥ अर्बुद ॥ ८॥ श्री अमर सागर सूरीसरो, कल्याण सूरी पाटे विराजेरे; सकल सूरिश्वर तिलक सारिखो, पदवी नित्य प्रते राजेरे ॥ अर्बुद ॥ ९॥ तासुपक्ष शुद्ध संयम धारी, पालीताणा शाखा सारीरे; पंडित श्री मुनिसील हितकारी, राय राणा सुखकारीरे ॥ अर्बुद ॥ १०॥ तेह तणा शिष्य अति गुणवंता, गुणशील मुनि जयवंतारे; तेह तणा शिष्य वाचक जाणो, विनयशील चित्त आणोरे ॥ अर्बुद ॥ ११ ॥ संवत् ( १७४२) सत्तर बेंतालीस वर्षे, वडनगरमा हर्षेरे; अर्बुद गिरि गावो चित्त भावें, For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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